राजीव यादव आत्महत्या प्रकरण में आरोपी बनाए गए पूर्व चेयरमैन कुलदीप उर्फ़ संटू गुप्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्हें और उनकी पत्नी, नगर पालिका अध्यक्ष ज्योति गुप्ता को राजनीतिक द्वेष भावना के तहत झूठा फंसाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे स्वयं इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं ताकि सच्चाई जनता के सामने आ सके।
संटू गुप्ता ने बताया कि मृतक राजीव यादव और नगर पालिका प्रशासन के बीच विवाद नया नहीं था। राजीव यादव ने पहले भी नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ एक रिट कोर्ट में दाखिल की थी, जिसमें कोर्ट ने आदेश दिया था कि दो महीने के भीतर मामले का निपटारा किया जाए। उसी के अनुपालन में नगर पालिका अध्यक्ष ने एक कमेटी गठित कर दी थी और जांच की प्रक्रिया चल रही थी। गुप्ता के मुताबिक, इस दौरान अध्यक्ष या EO ने कोई दबाव नहीं डाला, बल्कि यह कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा था।
उन्होंने यह भी दावा किया कि राजीव यादव लगातार एक विशेष पद की मांग कर रहे थे जिससे उनका एरियल भत्ता बढ़ सके। लेकिन वह पद केंद्रीकृत था और नगर पालिका अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता था। ऐसे में उनकी मांग पूरी करना संभव नहीं था। संटू गुप्ता ने आरोप लगाया कि जब यह मांग पूरी नहीं हुई, तो राजीव यादव ने धमकी दी थी कि वह उन्हें झूठे मामले में फंसा देंगे।
पूर्व चेयरमैन ने यह भी सवाल उठाया कि राजीव यादव की नियुक्ति खुद संदिग्ध थी। उनकी सर्विस बुक में स्पष्ट आदेश दर्ज नहीं थे और इसी को लेकर उन्होंने कई बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। गुप्ता का कहना है कि कई रिट्स दायर की गईं और कुछ खारिज भी हो गईं। उनके अनुसार, यही कानूनी उलझन और नियुक्ति पर उठते सवाल राजीव यादव के मानसिक तनाव का असली कारण थे, न कि नगर पालिका अध्यक्ष या EO का उत्पीड़न।
संटू गुप्ता ने आगे कहा कि घटना से कुछ दिन पहले ही राजीव यादव उनसे मिले थे और एक पत्र दिखाया था। लेकिन उस पत्र पर तारीख बाद में डाली गई थी, जिससे यह शक होता है कि यह साजिशन तैयार किया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अध्यक्ष ने कभी भी उनका वेतन रोकने की कार्रवाई नहीं की थी, बल्कि EO को आदेश दिया गया था कि जिस दिन सभी कर्मचारियों का वेतन जारी हो, उसी दिन उनका भी कर दिया जाए।
संटू गुप्ता ने जिलाधिकारी और एसएसपी से अनुरोध किया कि इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। उन्होंने कहा कि उन्हें इस घटना पर गहरा दुख है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि आरोप और सच्चाई के बीच अंतर किया जाए। उनके अनुसार, नगर पालिका के नाम पर उन्हें और उनकी पत्नी को बदनाम करना राजनीतिक खेल है, जबकि असली सच्चाई राजीव यादव की नियुक्ति और कानूनी विवादों से जुड़ी हुई है।
इस पूरे मामले पर सन्टू गुप्ता के समर्थक हरिओम तिवारी का कहना है कि संटू गुप्ता ने नगर पालिका की कमान संभालते हुए इटावा में जमकर काम कराया। उन्होंने सड़क, नाली और रोशनी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर बनाया। वे हमेशा जनता के बीच जाकर समस्याएँ सुनते और उनका समाधान करते थे। आरोप लगाना आसान है लेकिन जनता उनके किए कामों को कभी नहीं भूल सकती।
राजेश यादव बताते हैं कि संटू गुप्ता सिर्फ विकास कार्यों तक सीमित नहीं रहे बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाई। जब एक गरीब छात्रा की फीस जमा नहीं हो पाई तो उन्होंने खुद पैसे देकर उसकी पढ़ाई रुकने से बचाई। ऐसे संवेदनशील इंसान को बदनाम करना बिल्कुल गलत है।
देवेश का कहना है कि संटू गुप्ता ने हर छोटे-बड़े काम को महत्व दिया। चाहे मोहल्ले की नालियों की सफाई हो, वाटर कूलरों की मरम्मत हो या पार्कों का सौंदर्यीकरण—हर जगह उनका योगदान साफ दिखाई देता है। उन्होंने हमेशा जनता के बीच जाकर काम किया और यही उनकी असली पहचान है।
रामवीर कहते हैं कि संटू गुप्ता जनता के बीच रहकर उनकी समस्याएँ सुनते और तुरंत कार्रवाई करवाते थे। वे अक्सर खुद लोगों से कहते थे कि गंदगी या परेशानी दिखे तो उन्हें सीधा फोन या व्हाट्सएप करें। जनता से इतना जुड़ा हुआ नेता आज के समय में बहुत कम देखने को मिलता है।