टिक्सी महादेव लोक मानव की असीम श्रद्धा का केन्द्र है। इटावा के इस सुविख्यात मंदिर को टिक्सी नाम से पुकारे जाने के सम्बन्ध मे विद्वान एकमत नहीं है। इस मंदिर की बनावट की तुलना शिव की टिकरी से की गयी है। प्राय: ग्रीष्मकाल में शिवलिगं को लगातार शीतलता प्रदान करने के लिये उसके ऊपर एक तिपाई पर मिट्टी पर घड़ा रख दिया जाता है। जिसकी पेंदी में एक लधु छेद में लगी कपड़े की बत्ती से बूंद बूंद पानी टपकता रहता है। शिवलिगं के ऊपर वाली तिपाई को टिकरी कहते हैं। उसी का विकृत रूप टिक्सी भी प्रचलन में है। मंदिर की बनावट भी टिक्सी के समान ही है। ऊपर लधु वृत्ताकार एवं प्रारम्भ में दीर्घ वृत्ताकार।
शिव के ब्रहमचर्य जीवन की साधना से भी जोड़ा जाता है मंदिर
इटावा से ग्वालियर की ओर जानेवाली सड़क पर यमुना के लगभग आधा किलोमीटर पहले टिक्सी महादेव का यह मंदिर स्िथत है। मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार पश्िचम कि ओर है और सड़क के बायें किनारे से ही सीढ़ियों की एक लम्बी कतार चली जाती है। इन सीढ़ियों को थोड़ी समतल जगह मिलती है, जो कि मुख्य रूप से मंदिर की नींव की कुर्सी है। यह प्राकृतिक रूप से ऊचें स्थान से पूर्व की ओर राजा सुमेर सिहं के किले के अवशेष विखरे पड़े हैं, जिनको बारादरी कहा जाता है। उत्तर की ओर एक आश्रम एवं धर्मशाला है तथा दक्षिण की ओर पुन: सीढ़ियों की एक श्रंखला चली गई है। देवालय की ओर जाने वाली इन सीढ़ियों को मराठा शैली की मेहराबदार छत ढके हुये हैं। लगभग इसी के समकक्ष ही (खोढ़ी ईटों से) मंदिर के सामने वाले बुर्जो का प्रारम्भ हो जाता है। सीढ़ियों के अंत शिवालय की प्रदक्षिणा पथ के बाहरी भाग पर होता है। मंदिर का यह हिस्सा खुले नीले आकाश के तले है। इस स्थान के चारों कोनों पर कंगूरे युक्त बुर्जो का निर्माण किया गया है। यह बुर्ज काफी मजबूती से गढ़े गये हैं। सीढ़ियों के समाप्त होने वाले स्थान पर भी एक महराबी छत है। जिसके बीचों बीच एक बड़ा घण्टा शोभित है। पूरे मंदिर को शिव के ब्रह्मचर्य जीवन की साधना से भी जोड़ते हैं। मंदिर के गर्भ गृह को एक परम्परागत गोल गुंबज आवृत्त किये हुये है एवं उसकी दीवारों में विभिन्न मूर्तियों की भी स्थापना हैं।
सेनापति गणेश मराठा ने कराया था निर्माण
नौवी-दसवीं शताब्दी का प्रतीक्षा काल शैव पूजा का सबसे महत्वपूर्ण काल है। इस काल खण्ड में शिव मंदिरों का व्यापक रूप से निर्माण हुआ है। टिक्सी मंदिर परिसर में प्राचीन मूर्ति शिल्प के अवशेष भी प्राप्त नहीं होते हैं। अत: निर्विवाद रूप से यह मंदिर मराठा काल में निर्मित है। सन् 1772 ई0 में इटावा पर सदाशिव भाऊ मराठा ने आक्रमण किया था। उन्हीं के सेनापति गनेश मराठा ने टिक्सी मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर वास्तु शैली एक किले के रूप में है। अठाहरवीं शताब्दी के प्रारम्िभक दशक इटावा के लिये भी अत्यधिक राजनैतिक उथल-पुथल के रहे हैं। इस काल में यह मंदिर उपेक्षित बना रहा।
इटावा गजेटियर में टिक्सी मंदिर का निर्माण काल 1780 ई0 दिया गया है।