इस बीच ह्यूम ने एक और दूरदर्शी कार्य किया था। उन्होंने इटावा में स्िथत खजाने का एक बड़ा भाग आगरा भेज दिया था तथा शेष भाग इटावा के ही अंग्रेजों के वफादार अयोध्या प्रसाद अग्रवाल की कोठी में छुपा दिया था। इटावा के विद्रोहियों ने पूरे शहर पर अपना अधिकार कर लिया। खजाने में शेष बचा 4 लाख रूपया लूट लिया। अंग्रेजों ने इटावा छोड़ने का फरमान दे दिया।
डिप्टी कलेक्टर लक्ष्मण सिहं, प्रतापनेर कुं0 जोर सिहं तथा अन्य वफादारों ने अंग्रेजों के परिवारों को बढ़पुरा से आगरा पहुंचा दिया। इटावा में अब केवल ह्यूम तथा फौजी अफसर पारकर बचे। ह्यूम ने स्थानीय जमीदारों की एक रक्षक सेना बनाई लेकिन ग्वालियर की देशी सेना के विद्रोह के कारण यह रक्षक सेना अपना कार्य नहीं कर सकी।