राजकिशोर गुप्ता इटावा में प्रभावशाली पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे पत्रकारिता के क्षेत्र में 2002 में आए, उनके पास पत्रकरिता क्षेत्र का 21 वर्षों से अधिक का अनुभव हैं। उन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत देश दुनिया के मशहूर समाचार पत्र दैनिक जागरण से की और आज भी वे दैनिक जागरण के लिए कार्यरत हैं। राजकिशोर ने पत्रकारिता के जीवन में कभी समझौता नहीं किया है, बल्कि हमेशा निडरता और निर्भिकता से अपना काम किया है।
राजकिशोर गुप्ता का जन्म दिसंबर 1974 में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंडित बाबूराम आदर्श इंटर कॉलेज बम्हनीपुर से पूरी की है। उच्च शिक्षा उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की है।
राजकिशोर गुप्ता के पिता रामबाबू गुप्ता ताखा क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित शिक्षक रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संकुल प्रभारी के रूप में कई वर्षों तक काम किया और शिक्षा विभाग में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी माँ राधा गुप्ता एक कुशल गृहणी हैं।
नीरजा गुप्ता राजकिशोर गुप्ता की पत्नी हैं। वे एक समझदार और प्रेरणादायक गृहिणी हैं जो हमेशा अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती हैं। उनके दो बेटे हैं, अभिषेक और प्रशांत। अभिषेक उच्च शिक्षा में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और वे एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में एचआर के पद पर कार्यरत हैं। छोटे बेटे प्रशांत वर्तमान में यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं।
राजकिशोर गुप्ता पत्रकारिता के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति हैं जिन्हें ग्रामीण अंचल में रहने वाले गरीब लोग अपनी ताकत के रूप में मानते हैं। जनपद में ग्रामीण क्षेत्रों में लोहा मनवाने वाले पत्रकारों में राजकिशोर गुप्ता कोई परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी पहचान उनकी लेखनी और कलम से जानी जाती है। उनकी कलम हमेशा निर्भीकता और निडरता से चली है। उनकी पहचान एक खोजी पत्रकार के रूप में भी जानी जाती है।
ताखा में लाखों रुपये के कागजों पर हुए इंटरलाकिंग घोटाले में, जब उनकी कलम चली, तो एक नहीं, तीन-तीन पंचायत सचिवों के खिलाफ प्रशासन को रिपोर्ट लिखनी पड़ी। उनकी कलम की ताकत पर एक पंचायत सचिव को जेल जाना पड़ा और घोटाले के पैसों की वसूली में करनी पड़ी।
ताखा में बहुचर्चित पौधरौपड़ घोटाले का भी खुलासा केवल उनकी कलम की ताकत से किया गया। इस घोटाले में लाखों रुपये की वसूली के साथ प्रशासन को खंड विकास अधिकारी सहित अन्य कर्मचारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करानी पड़ी।
उन्होंने कस्तूरबा गांधी आवासीय वालिका विद्यालय में बच्चों को उनका हक न मिलने पर लड़ाई लड़ी, आखिरकार सफलता मिली। जहां बच्चों को मिलावटी दूध मिलता था और समय पर भोजन भी नहीं मिलता था, लेकिन राजकिशोर ने अपनी अपनी ख़बर के दम पर, बच्चों को उनका हक दिलवाया। अब बच्चों को शुद्ध दूध मिलता है बच्चों के भोजन लिए आवंटित बजट में घोटाला करने वाली बार्डन को भी प्रशासन को हटाना पड़ा।
राजकिशोर कोरोना काल में अपने अद्भुत योगदान देने के लिए जाने जाते है। वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार लोगों की सहायता करने में सक्रिय रहे हैं। उन्हें कालिका माता सुंदर कांड सेवा समिति का एक वरिष्ठ सदस्य के रूप में चुना गया है। कोरोना महामारी के समय, उनकी समिति ने दिन-रात अपने घरों को छोड़कर यात्रियों की मदद करने में सक्रियता दिखाई है। वे और उनकी टीम तपती धूप में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर जाकर पैदल यात्रियों को भोजन प्रदान करते थे। आज भी वे समाज सेवा में निरंतर सक्रिय रहते हैं और अपना समय और श्रम समाज के हित में लगाते हैं।
उन्होंने अपनी कलम की ताकत का उपयोग करके अन्याय, भ्रष्टाचार, और असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। उनके लेखों ने सामान्य जनता की आवाज को बढ़ावा दिया है और संवेदनशील मुद्दों के प्रति जागरूकता फैलाई है। उन्होंने गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, और किसानों की मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया है।
इन सब कार्यों के परिणामस्वरूप राजकिशोर गुप्ता ने लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। उन्होंने ग्रामीण और गरीब जनता को अपनी आवाज उठाने का साहस दिया है और उनके मुद्दों को मीडिया के माध्यम से प्रकट किया है। उनकी साहित्यिक योग्यता और दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक प्रमुख पत्रकार के रूप में मान्यता दिलाई है और उनके लेखन को समाज में प्रभावी बदलाव लाने में सहायता की है।
राजकिशोर गुप्ता ने पत्रकारिता के माध्यम से सत्य, न्याय, और सामाजिक इंसाफ की अद्वितीय प्रेरणा दी है। उनकी आक्रामक और निडर कलम ने उन्हें समाज के लोगों के बीच प्रियतम बना दिया है। उनका समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा दूसरों को प्रेरित करती है और उन्हें एक ऐसे पत्रकार के रूप में मान्यता प्राप्त है जिसने अपनी कलम की मदद से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का संकल्प लिया है।