इटावा की धरती पर यह दृश्य हर संवेदनशील व्यक्ति के दिल को झकझोर रहा है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा पिछले डेढ़ वर्ष से अधिक समय से कपड़े में लिपटी खड़ी है। जिस महामानव ने राजनीति को मर्यादा, संवाद और संस्कार की परिभाषा दी, जिनकी वाणी में राष्ट्रप्रेम और जिनके व्यक्तित्व में विनम्रता की शक्ति थी, उसी अटल जी को आज शहर के बीचोंबीच इस तरह खड़ा देखकर हर व्यक्ति का सिर शर्म से झुक रहा है। क्या सत्ता का अहंकार इतना बड़ा हो गया है कि अब अपने पुरखों का सम्मान भी राजनीति के तराजू पर तोला जा रहा है?
इटावा भाजपा के भीतर का यह हाल अब संगठन के चरित्र पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। कहा जाता है कि किसी के अनैतिक होने की भी एक सीमा होती है, लेकिन लगता है इटावा भाजपा ने वह भी पार कर दी है। डेढ़ साल से अटल जी की प्रतिमा का अनावरण कुछ ‘धनपशुओं’ के अहंकार के चलते नहीं हो पाया।
आज देश में इटावा भाजपा में यैसे भी पदाधिकारी है जिन्होंने कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी माँ तक को गाली दी थी। यह स्थिति न केवल शर्मनाक है, बल्कि उन कार्यकर्ताओं के आत्मसम्मान पर भी गहरी चोट है जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी पार्टी के लिए समर्पित कर दी।
हर ईमानदार कार्यकर्ता के दिल में आज आक्रोश और पीड़ा है। वे लोग, जिनकी वजह से आज कई नेता कुर्सियों पर बैठे हैं, वही आज सबसे अधिक अपमानित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। यह कैसी राजनीति है जिसमें त्याग और विचारधारा की जगह स्वार्थ और पैसा ले चुके हैं? भाजपा का मूल मंत्र था “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” लेकिन आज लगता है यह “स्वजन हिताय” तक सिमट गया है।
डीएम चौराहा पर अटल जी की ढकी हुई प्रतिमा इटावा के भाजपाइयो के गालों पर एक गहरा तमाचा बन गई है, यह सिर्फ़ मूर्ति नहीं, वह विचारधारा है जो मौन होकर भी हम सबको आईना दिखा रही है। सवाल अब सिर्फ़ इतना नहीं कि कपड़ा कब हटेगा, सवाल यह है कि भाजपा के भीतर से यह अनैतिक अंधकार कब हटेगा। जिन्होंने अटल जी की मर्यादा भुला दी, इटावा उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।

