नगर पालिका इटावा में फैले भ्रष्टाचार और राजीव यादव की आत्महत्या का मामला अब राजनीतिक रंग लेने लगा है। सपा और भाजपा दोनों ही पार्टियों के लिए यह मुद्दा गले की हड्डी साबित हो रहा है। खासकर पूर्व चेयरमैन कुलदीप उर्फ़ संटू गुप्ता का नाम सामने आने से सपा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। एक तरफ पार्टी का पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठजोड़ पीड़ित परिवार के पक्ष में खड़ा होने का दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी ओर नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठी ज्योति गुप्ता को बचाने का सवाल पार्टी संगठन के सामने खड़ा है।
भाजपा भी इस मामले से अछूती नहीं है। नगर पालिका से जुड़े कई कामों और ठेकों से भाजपा के कुछ स्थानीय नेता और कार्यकर्ता हर महीने अच्छा-खासा लाभ लेते हैं। यही कारण है कि विपक्ष के तौर पर भाजपा भी इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बच रही है। जनता के बीच यह चर्चा तेज है कि यदि भाजपा वास्तव में नगर पालिका के भ्रष्टाचार के खिलाफ है, तो उसे बिना किसी डर के सामने आकर पीड़ित परिवार का समर्थन करना चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक और गंभीर आशंका जताई जा रही है। पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में मृतक राजीव यादव को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जाएगी। झूठी कहानियाँ और नकारात्मक अभियान चलाकर उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास किया जा सकता है, ताकि असली सवाल और असली जिम्मेदार लोग बच निकलें। यह प्रवृत्ति न केवल निंदनीय है, बल्कि पीड़ित परिवार के साथ अन्याय भी है।
इटावा के नागरिकों का आक्रोश अब सोशल मीडिया और स्थानीय चर्चाओं में साफ झलक रहा है। लोग खुलकर कह रहे हैं कि चाहे सत्ता किसी भी पार्टी की हो, नगर पालिका के भ्रष्टाचार का हिसाब लिया जाना चाहिए। जनता के सहयोग से चुने गए प्रतिनिधि यदि जनता की उम्मीदों को तोड़ते हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो उन्हें राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
इस समय इटावा के हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सच और झूठ में फर्क करे। पेड न्यूज़, पेड पोस्ट और खरीदे गए अभियान के जाल में न फंसे, बल्कि भ्रष्टाचार के असली चेहरों को पहचानकर उनका विरोध करे। राजीव यादव की मौत सिर्फ एक परिवार का नुकसान नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर इस तरह के “पेड” नेताओं और उनके संरक्षकों को उनकी असलियत दिखाएं।