इटावा– जलवायु परिवर्तन,सूखा व अत्यधिक मानव जनसंख्या विस्फोट के प्रभाव से इटावा मैनपुरी की शान कहा जाने वाला उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी सारस अब संकट में है क्यों कि, अत्यधिक मानवीय जनसंख्या विस्फोट के कारण इनके प्राकृतिक वास अब लगातार सिकुड़ते भी जा रहे है जो कि भविष्य का एक चिंतनीय विषय भी होगा। हम सभी यह लगातार भूलते जा रहे है कि,इस धरती पर पाई जाने वाली सभी प्रजातियों का भी इस धरती पर उतना ही अधिकार है जितना कि मानव जाति का है। साथ ही साथ हम सबके जीवन के अस्तित्व को बचाये रखने के लिये भी सभी छोटी बड़ी जीव प्रजातियों का धरती पर जीवित रहना भी बेहद ही आवश्यक है । पर्यावरण संरक्षण की इस महत्वपूर्ण कड़ी में जैव विविधता में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सारस पक्षी अब संकट काल में ही जी रहे है। भारत के कई प्राकृतिक वेटलैंड्स आज संकट की श्रेणी में आ चुके है जिनमे न जाने कितनी ही प्रजातियों को वर्ष भर संरक्षण व आश्रय मिलता रहता है। आपको बता दूँ कि,ये वेटलैंड्स (नमभूमि क्षेत्र) एक विशिष्ट प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र (प्राकृतिक किडनी) भी होते है जो ताल ,झील,पोखर, दलदल,के नाम से भी जाने जाते है सामान्यतयः वर्षा ऋतु में ये जल से लबालब भर जाते है । जो धरती पर जल भंडारण का कार्य तो करते ही है बल्कि वर्षा जल को साफ करने के साथ धरती की विभिन्न जैवविविधता को लम्बे समय तक संरक्षण भी देते है । ये बाढ़ के पानी को भी समय आने पर अपने अंदर समा लेते है इसीलिए इन्हें बायलोजिकल सुपर मार्केट व प्रकृति की किडनी के नाम से भी पुकारा जाता है ये प्रकृति में एक भोज्य जाल बनाने के साथ ही उसमे भरे जल को लगातार ही शुद्ध भी करते रहते है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में मात्र एक बड़ा वेटलैंड है जिसका की क्षेत्रफल 26,590 हेक्टेयर है जो कि ऊपरी गंगा का ब्रजघाट से लेकर नरौरा तक फैला हुआ है जो कि, रामसर साइट के रूप मे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भी है । जिसकी जैवविविधता में गंगा की डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर कछुए व मछलियों की 82 प्रजातियों एवम सौ से अधिक पक्षियों की प्रजाति के वास स्थान के कारण यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सूची में 2005 में भी जोड़ लिया गया है । उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में घोषित हमारा राज्य पक्षी सारस (ग्रस एन्टीगोंन) विश्व मे उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़ा पक्षी भी माना जाता है जिसके नर की लम्बाई 156 से 180 सेमी तक होती है यह हमेशा जोड़े में ही रहता है। पर्यावरण संतुलन में इसकी विशिष्ट भूमिका भी सर्वविदित है । जो कि,इन्ही नम भूमि नामक वेटलैंड्स एरिया में पाया जाता है ।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉक्टर आशीष त्रिपाठी ने बताया हमारी धरती पर पाये जाने वाले वेटलैंड्स एक अति महत्वपूर्ण इको सिस्टम का बड़ा हिस्सा होते है जो प्राचीन काल से ही समाज व पर्यावरण के विकास में सहायक रहे है पूरे विश्व में यह वेटलैंड्स मछली और चावल के रूप में भोजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन भी करते हैं। उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले वेटलैंड्स में मुख्य रूप से ऑक्स बो लेक्स, झील, पोखर, दलदली भूमि, मानव निर्मित जलाशय इत्यादि प्रमुख है। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से 13 वेट लैंड्स मौजूद है जिनमें नवाबगंज, समसपुर, लाखबहोसी ,सांडी,बखीरा ,ओखला ,समान,पार्वती अरगा ,विजय सागर, पटना, सुरहा ताल ,सूर सरोवर एवं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पक्षी विहार शामिल है वेटलैंड्स में बदलाव व क्षरण के कुछ मुख्य घटक आजकल देखने में आते हैं जैसे वहां की जल राशि में बदलाव हो जाना जिसे हाइड्रोलॉजिकल अल्टरेशन भी कहा जाता है बंधायुक्त जलाशय बनाना अत्यधिक चराई का होना वेटलैंड प्रोडक्ट्स का अति दोहन होना इनके जल क्षेत्र का संकुचित होना व घरेलू कृषि व व्यवसाय कार्यों के लिए जल की मांग व अन्य कृषि डायवर्जन कार्य होना एवं वेट लैंड एरिया में अवांछनीय वनस्पतियों व खतरनाक रसायनो का प्रयोग होना व खरपतवार का एकत्रित हो जाना यह सब वेटलैंड के सिकुड़ने व क्षरण होने के मुख्य कारक है प्रदेश के वन क्षेत्रों में कुछ महत्वपूर्ण वेटलैंड्स को देखा जाए तो उनमे पीलीभीत वन प्रभाग का वन क्षेत्र, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लखीमपुर कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग, बहराइच सुभागी वर्मा वन्यजीव प्रभाग महाराजगंज राष्ट्रीय चंबल वन्य जीव विहार कछुआ वन्यजीव अभ्यारण इत्यादि वन क्षेत्र में महत्वपूर्ण वेटलैंड्स पाए जाते हैं इन वेटलैंड्स में प्रमुख रूप से पाई जाने वाली स्तनधारी प्रजातियों में गेंडा, खरगोश ,हिरण,उदविलाव, डॉल्फिन बारहसिंघा ,इत्यादि शामिल है वही पक्षियों की प्रजातियो में बंगाल फ्लोरीकन सारस ,ककेर प्रमुख है वहीं सरीसृप जातियों में घड़ियाल, मगर, फ्रेश वॉटर टर्टल की लगभग 12 प्रजातियां व तराई क्षेत्र प्रजातियां प्रमुख है इसी के साथ वनस्पतियों को देखा जाए तो सरपत, मूंज ,नरकुल सेवार, तिंन्धान, कसेरू, जामुन, कमलगट्टा, सिंघाड़ा इत्यादि वनस्पतियां पाई पाई जाती है जिनमें किसान कमल गट्टा और सिंघाड़ा की खेती वेटलैंड एरिया में करना ज्यादा पसंद करते हैं यदि रामसर वेटलैंड साइट का इतिहास देखें या वेटलैंड की अनिवार्यता या प्रकृति में उनकी महत्वता का पूर्ण आकलन करें तो 2 फरवरी 1971 को ईरान में वेटलैंड पर आयोजित हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की यादें ताजा होती है, जिसमें रामसर साइट अस्तित्व में आई , तब वेटलैंड्स की महत्त्वता को देखते हुए सम्पूर्ण विश्व समुदाय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे स्वीकारा और इसे मान्यता भी दी वर्तमान में 160 देशों के समूहों ने रामसर साइट की मान्यता को स्वीकार कर लिया। भारत में अब तक अंतर्राष्ट्रीय महत्व की मात्र 25 वेटलैंड चिन्हित और नामित किए गए हैं जिन का कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में भी एक महत्वपूर्ण वेटलैंड ऊपरी गंगा बृजघाट से लेकर नरौरा तक का भाग रामसर साइट के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है अब आइये बात करते हैं प्रदेश में पाए जाने वाले राज्य पक्षी सारस की जो कि उत्तर प्रदेश के समस्त मैदानी क्षेत्रों में देखा जाता है लेकिन ज्यादातर इटावा, मैनपुरी, औरैया,एटा, अलीगढ़ ,शाहजहाँपुर आदि जिला में बड़े-बड़े जलीय क्षेत्रों के कारण इनके बड़े झुंड दिखाई पड़ते हैं। वर्ष भर में प्रदेश में राज्य पक्षी सारस की गणना होती रहती है जिसमें वन विभाग द्वारा विभिन्न समय अंतराल पर इनकी जन गणना कराई जाती है यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि, किसी भी जलीय एवं दलदली क्षेत्र में सारस का पाया जाना उस क्षेत्र के स्वस्थ पर्यावरण का सूचक भी माना जाता है* यह पक्षी ग्रुइडी कुल का सदस्य है। भारत में इनकी प्रजाति के चार अन्य सदस्य भी पाए जाते हैं जिनमें साइबेरियन क्रेन, कॉमन क्रेन, डेमोसिल क्रेन एवं ब्लैक नेक क्रेन प्रमुख है। यह सब शीतकालीन प्रवास हेतु हमारे देश के गर्म भागों की झीलों और तालाबों के पास हमेशा ही आते रहते हैं इनमें से लद्दाख में पाए जाने वाला ब्लैक नेक क्रेन उत्तरी पूर्वी भागों में अपने प्रवास के लिए आता है यह पक्षी जिसके पैर और लाल रंग के होते हैं गर्दन व शेर सुर्ख लाल व टोपी सिलेटी रंग की होती है इसके बच्चे भी भूरे रंग के दिखाई देते हैं लेकिन बड़े होने पर वह पूरे सिलेटी रंग के हो जाते हैं इन्हें हमेशा जोड़ें में देखा जाता है कभी-कभी यह बड़े समूहों में भी दिखाई देते है । ये गांव व खेतों के समीप निर्भय होकर विचरण करते रहते हैं इनका प्राकृतवास खुला कृषि क्षेत्र दलदली भूमि झील तालाब नहर नदी ही इत्यादि होते हैं भोजन में यह जलीय पौधों की जड़ व फसलों के दाने, मेढक, मछली ,छिपकली, सांप आदि खाते हैं देखा जाए तो जुलाई से दिसंबर में यह पक्षी प्रजनन करता है जिस का घोसला पानी से भरे धान के खेत झील तालाब के मध्य एक घास के ढेर पर बना देखा जा सकता है मादा सारस एक बार में हल्के गुलाबी सफेद रंग के 2 अंडे ही देती है जिसमें नर और मादा सारस दोनों मिलकर अपने घोसले की रक्षा करते हैं इसके बाद अंडों से निकले इनके बच्चे लगभग 1 वर्ष तक उनके साथ ही रहते हैं वर्तमान में यह राज्य पक्षी सारस उत्तर प्रदेश दक्षिण मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार,पश्चिम बंगाल, आसाम आदि प्रांत में पाया जाता है इसके अतिरिक्त नेपाल के तराई क्षेत्र में भी छोटे समूह में पाए जाते हैं पाकिस्तान बांग्लादेश में यह देखा जाता है साथ ही सौभाग्य से यह इटावा, मैनपुरी क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या में देखा जाता है। वेटलैंड्स के लगातार सिकुड़ने के कारण इनके प्राकृतवास में लगातार कमी भी आ रही है इनके घोंसलों से या तो अंडे चोरी हो जाते हैं या आवारा कुत्ते या अन्य जानवरों द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे इस प्रजाति के जीवन व अस्तित्व पर आज खतरा भी मंडरा रहा है। इसके अलावा इन्हें शिकार और अवैध व्यापार के लिए भी पकड़ लिया जाता है अक्सर हाई टेंशन की विद्युत लाइनों से टकराकर इनकी मृत्यु भी हो जाती है।
मेरा आप सभी से यही कहना है कि, राज्य पक्षी सारस का पर्यावरण संरक्षण में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान भी है है अतः इस पक्षी की जनसंख्या को कम होने से बचाएं । सारस के प्राकृतिक वास के आसपास अपने खेतों या जिलों में सिंघाड़ा, कमलगट्टा आदि फसलों में खतरनाक कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें जिससे इनका भविष्य सुरक्षित रहे। गांव के समीप खेतों में रखे इनके अंडे अन्य पशुओं द्वारा भी नष्ट कर दिए जाते हैं आप सभी उन्हें ऐसा करने से रोके व अंडों को सुरक्षित रखें। विदित है कि, यह पक्षी भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की चौथी अनुसूची में भी सूचीबद्ध है अतः इसका अवैध शिकार करना या इसे किसी भी प्रकार का कोई भी नुकसान पहुंचाना गैरकानूनी व दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल है ।