शरद बाजपेयी का जीवन इटावा की सामाजिक-राजनीतिक चेतना में एक प्रेरक कहानी के रूप में देखा जाता है। वे उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिनका व्यक्तित्व सत्ता की राजनीति से नहीं, बल्कि सेवा, संगठन और संघर्ष की ज़मीन से गढ़ा गया है। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर जनप्रतिनिधि बनने तक की उनकी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि निरंतर मेहनत, अनुशासन और जनता के प्रति ईमानदार भाव से राजनीति को एक सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।

05 जुलाई 1977 को जन्मे शरद बाजपेयी को बचपन से ही संस्कारों की मजबूत नींव मिली। उनके पिता कमल किशोर वाजपेयी ने उनमें सत्यनिष्ठा, सामाजिक उत्तरदायित्व और राष्ट्रप्रेम के मूल्य रोपे। पारिवारिक वातावरण में मिले ये संस्कार आगे चलकर उनके सार्वजनिक जीवन की पहचान बने। वे प्रारंभ से ही समाज के प्रति संवेदनशील रहे और आम लोगों की समस्याओं को समझने की जिज्ञासा उनके स्वभाव में रच-बस गई।

शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बी.एस.सी., एम.एम. और बी.पी.एड. जैसी डिग्रियां प्राप्त कर स्वयं को अकादमिक रूप से सशक्त किया। अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने युवाओं की मानसिकता, संघर्ष और संभावनाओं को बहुत करीब से देखा। यही अनुभव उन्हें एक ऐसा जननेता बनाता है, जो केवल भाषण नहीं देता, बल्कि समाज की वास्तविक जरूरतों को समझकर समाधान की दिशा में काम करता है।

उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव 39 वर्षों का है। कक्षा 6 से शाखाओं में जाना, पथ संचलन में भाग लेना और प्रशिक्षण शिविरों में सहभागिता करना उनके व्यक्तित्व को अनुशासन और राष्ट्रनिष्ठा से भरता चला गया। संघ के संस्कारों ने उन्हें सिखाया कि राष्ट्र और समाज सर्वोपरि हैं, और व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब वह सेवा के लिए समर्पित हो।

वर्ष 1989 से भारतीय जनता पार्टी के साथ शुरू हुआ उनका राजनीतिक सफर एक कार्यकर्ता की तपस्या का उदाहरण है। बैनर-पोस्टर लगाने, सभाओं की तैयारी और घर-घर जाकर जनसंपर्क जैसे छोटे-छोटे कार्यों को उन्होंने कभी छोटा नहीं माना। उन्होंने राजनीति को करियर नहीं, बल्कि सामाजिक दायित्व के रूप में जिया, इसी कारण वे कार्यकर्ताओं और जनता दोनों के बीच भरोसे का नाम बनते गए।

संगठन में उनकी निष्ठा और कार्यकुशलता के कारण वे 1998 से लगातार तीन बार अकालगंज वार्ड के अध्यक्ष बने। इसके बाद संच प्रमुख, नगर महामंत्री, नगर संयोजक और नगर अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहकर उन्होंने पार्टी संगठन को जमीनी स्तर तक मजबूत किया। बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को जोड़ना और जनता से सतत संवाद बनाए रखना उनकी कार्यशैली की विशेष पहचान रही।

नगर अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने “चलो वार्ड की ओर” और “भाजपा जनता के द्वार” जैसे अभियानों को प्रभावी ढंग से लागू किया। इन कार्यक्रमों के माध्यम से वे सीधे नागरिकों के बीच पहुंचे, उनकी समस्याएं सुनीं और समाधान के प्रयास किए। इससे पार्टी और जनता के बीच विश्वास की खाई कम हुई और संगठन को सामाजिक समर्थन मिला।

वर्ष 2012 में उन्होंने एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण वार्ड अकालगंज से नगर पालिका परिषद सभासद का चुनाव लड़ा। सामाजिक समरसता, विकास और संवाद के भरोसे उन्होंने इस कठिन चुनाव में सफलता हासिल की। यह जीत साबित करती है कि उनकी राजनीति विभाजन नहीं, बल्कि विश्वास और विकास पर आधारित है।

2017 एवं 2022 में पुनः निर्वाचित होकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि जनता उनके काम को याद रखती है। जनप्रतिनिधि के रूप में उनके कार्यकाल में सड़कों का निर्माण, स्ट्रीट लाइट, ट्यूबवेल, जलापूर्ति, फुटपाथ और साफ-सफाई जैसे बुनियादी कार्य प्राथमिकता पर रहे। उन्होंने विकास को केवल घोषणा नहीं, बल्कि धरातल पर उतारने का प्रयास किया।

सरकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, शौचालय अनुदान, राशन कार्ड और पेंशन जैसी योजनाओं का लाभ सैकड़ों जरूरतमंद परिवारों तक पहुंचा। उनके प्रयासों से कई परिवारों का जीवन स्तर बेहतर हुआ और शासन की योजनाएं सही मायने में सार्थक हुईं।

सामाजिक जीवन में वे सर्वसमाज के नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। जैन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और मुस्लिम समाज सहित सभी वर्गों के सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी सक्रिय सहभागिता रहती है। वे मानते हैं कि समाज का विकास तभी संभव है जब सभी वर्गों को साथ लेकर चला जाए और समरसता को जीवन मूल्य बनाया जाए।

खेल और योग उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। बी.पी.एड. की शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने राज्य स्तरीय सहस्त्राब्दी क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग लिया। आज भी वे खेल और योग को स्वस्थ शरीर और संतुलित मन का आधार मानते हैं, जो उनके सक्रिय और ऊर्जा-पूर्ण जीवन का रहस्य है।

कोरोना महामारी के कठिन दौर में शरद बाजपेयी का मानवीय चेहरा विशेष रूप से सामने आया। भय और अनिश्चितता के माहौल में उन्होंने जरूरतमंदों के लिए भोजन, राशन किट, मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध कराए। क्षेत्र में सैनिटाइजेशन और फॉगिंग की नियमित व्यवस्था कर उन्होंने जनस्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन का विस्तृत विवरण उनकी पुस्तक “मेरी भाजपा यात्रा – 1989 से अनवरत” में मिलता है, जिसमें उन्होंने अपने संघर्ष, अनुभव और सेवा कार्यों को ईमानदारी से दर्ज किया है। यह पुस्तक उनके जीवन दर्शन और कार्यशैली को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

हाल ही में अटल पथ पर अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रतिमा से जुड़े मुद्दे पर उनका रुख काफी स्पष्ट और मुखर रहा। उन्होंने फेसबुक के माध्यम से यह सार्वजनिक किया कि प्रतिमा का जल्द से जल्द अनावरण किया जाये, इसी मुद्दे पर उन्होंने आमरण अनशन की घोषणा कर यह सिद्ध किया कि वे केवल बयान देने वाले नेता नहीं, बल्कि आंदोलन और संघर्ष से समाधान निकालने वाले जननेता हैं।

आज शरद बाजपेयी का लक्ष्य पूरी तरह स्पष्ट है—कार्यकर्ताओं को सशक्त करना, संगठन को मजबूत बनाना और इटावा का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करना। जनता का विश्वास, वर्षों का अनुभव और सेवा की भावना उन्हें भविष्य में भी इटावा की प्रगति के लिए निरंतर प्रेरित करती रहेगी।


