स्वतंत्रता दिवस जैसे ऐतिहासिक दिन 15 अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी का पर्व मनाता है, उसी दिन इटावा की पवित्र धरती पर एक ऐसे पत्रकार का जन्म हुआ जिसने आने वाले समय में सच्चाई, ईमानदारी और निर्भीकता को अपनी कलम का धर्म बना लिया। यह नाम है वरिष्ठ पत्रकार गुलशन कुमार भाटी का। उनका जन्म स्वर्गीय मोती लाल और स्वर्गीय भगवान देवी के घर हुआ। बचपन से ही उन्हें परिवार से सादगी और नैतिक मूल्यों की शिक्षा मिली जिसने आगे चलकर उनके व्यक्तित्व और पत्रकारिता दोनों को आकार दिया।
गुलशन कुमार भाटी के जीवन का सबसे बड़ा परिचय उनकी सत्यनिष्ठा है। इटावा ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र में उन्हें देखकर यह कहा जाता है कि अगर कोई पत्रकारिता को सही मायनों में समझना चाहता है तो उसे गुलशन भाटी के जीवन से सीखना चाहिए। वे निष्कलंक, सज्जन, निष्ठावान और निर्भीक पत्रकार हैं। उनके लिए पत्रकारिता केवल पेशा नहीं बल्कि समाज और जनता के प्रति एक जिम्मेदारी रही है, जिसे उन्होंने हर हाल में निभाया।
उनकी पत्रकारिता का सफर सीधे अखबारों में नौकरी से नहीं बल्कि लेखन से शुरू हुआ। किशोरावस्था से ही उन्हें खेलों पर लिखने का शौक था, विशेष रूप से क्रिकेट पर। वह हाथ से लाइनदार पन्नों पर लेख लिखते और उसे खाकी लिफाफे में डालकर एक रुपये का टिकट लगाकर अखबारों को भेजते। जब उनका पहला लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ तो उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मेहनत सफल हुई। उस लेख के छपने से जो खुशी मिली, वह उनके जीवन की दिशा तय करने वाली घटना बन गई।
पहली बार जब उनका मेहनताना मनीऑर्डर से घर आया तो उनके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। यह वह क्षण था जब उन्हें विश्वास हुआ कि लेखन और पत्रकारिता को जीवन का हिस्सा बनाया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने नियमित रूप से लेख भेजने शुरू किए। धीरे-धीरे यह लेखन एक आदत नहीं बल्कि जीवन का जुनून बन गया। हिंदुस्तान अखबार में जब उनका लेख अंग्रेजी में छपा और मेहनताना चेक के रूप में मिला तो यह उनकी दूसरी बड़ी उपलब्धि थी।
इस दौरान फीचर एजेंसियों ने भी उनसे संपर्क किया। उन्होंने फीचर एजेंसियों को लेख भेजने शुरू किए और उनके लेख देशभर के कई अखबारों में छपने लगे। बिजनौर टाइम्स जैसे अखबारों में उनके लेख प्रकाशित हुए। इटावा से निकलने वाले अखबार ‘देशधर्म’ और ‘दिनरात’ ने भी उनके लेखों को जगह दी। ‘देशधर्म’ के तत्कालीन संपादक अविनाश चंद्र मोडवेल ने उन्हें समाचार लेखन का अवसर दिया। यह वह क्षण था जब गुलशन कुमार भाटी लेखन से धीरे-धीरे समाचार पत्रकारिता की ओर बढ़ रहे थे।
देशधर्म में उनका मार्गदर्शन सुधीर मिश्र ने किया। वह न केवल संपादकीय लिखते थे बल्कि अखबार के दूसरे और तीसरे पन्ने का संपादन भी करते थे। सुधीर मिश्र के मार्गदर्शन में गुलशन भाटी ने सीखा कि खबर बनाना और उसे प्रस्तुत करना एक गंभीर जिम्मेदारी है। जब भी उनकी शाम की ड्यूटी होती, तो वे श्री भाटी को बुलाते और चौथे पन्ने की खबरें बनाने का कार्य सौंपते। लंबे समय तक उन्होंने अवैतनिक कार्य किया लेकिन इससे उन्हें पत्रकारिता की गहराई समझने का मौका मिला।
देशधर्म में काम करते हुए उन्हें वरिष्ठ पत्रकार नरेश भदौरिया और संस्थापक पं. देवीदयाल दुबे का भी सानिध्य मिला। एक दिन सह संपादकों की अनुपस्थिति में पं. देवीदयाल दुबे स्वयं संपादकीय विभाग आए और कांपते हाथों से रेडियो से खबरें लिखते हुए बैठे रहे। उस दिन गुलशन भाटी को चौथे पन्ने की लीड खबरें बनाने का अवसर मिला। यह दिन उनके जीवन की ‘पत्रकारिता की अग्निपरीक्षा’ था और उन्होंने उसे सफलता से पार किया।
इस अनुभव ने गुलशन भाटी के भीतर आत्मविश्वास भर दिया। इसके बाद उन्होंने आज, अमर उजाला, हिंदुस्तान और दैनिक जागरण जैसे अखबारों के साथ काम किया। उन्होंने समाचार एजेंसी यूएनआई/वार्ता के लिए भी खबरें लिखीं। उनकी खबरें आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुईं। इससे उन्हें न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली। उनकी कलम से निकली खबरें न सिर्फ पाठकों तक पहुंचीं बल्कि रेडियो और टीवी के जरिये पूरे प्रदेश और देश तक गईं।
पत्रकारिता के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की खबरों को अमर उजाला ने प्रकाशित किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस को उन्होंने यूएनआई के जरिये राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। अभिनेता राज बब्बर का पहला इंटरव्यू उन्होंने लिया जो देशधर्म में छपा। यह उनके करियर का ऐतिहासिक क्षण था जिसने साबित कर दिया कि उनकी लेखनी हर क्षेत्र में उतनी ही प्रभावशाली है।
साल 2002 में उन्होंने अखबार ‘आज’ के कानपुर संस्करण में करीब डेढ़ साल तक काम किया। अक्टूबर 2003 से उन्होंने अमर उजाला के लिए काम करना शुरू किया। उस समय वे आगरा और कानपुर दोनों संस्करणों में खबरें भेजा करते थे। नवंबर 2008 से उन्होंने हिंदुस्तान में काम करना शुरू किया। अप्रैल 2011 से उन्होंने डिजिटल पत्रकारिता की ओर रुख किया और इटावा लाइव के एडिटर इन चीफ बने। जुलाई 2015 तक उन्होंने वहां काम किया और इटावा में वेब पत्रकारिता की नई नींव रखी।
जून 2017 में उन्होंने दोबारा अमर उजाला में काम करना शुरू किया और फरवरी 2024 तक वहां कार्यरत रहे। करीब डेढ़ साल पत्रकारिता से दूर रहने के बाद 1 जुलाई 2025 से उन्होंने फिर से दैनिक जागरण के साथ नई शुरुआत की। उनके लिए यह एक तरह से पुनर्जन्म जैसा अवसर था। इससे उनके शुभचिंतकों को भी अत्यंत खुशी मिली क्योंकि सब मानते थे कि ईमानदार पत्रकारिता की असली पहचान गुलशन भाटी ही हैं।
उनके जीवन में कई अद्भुत संयोग भी जुड़े। जुलाई महीने में ही उनका पहला लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ, जुलाई में ही उन्होंने पत्रकारिता में कदम रखा और जुलाई में ही दोबारा दैनिक जागरण में कार्यरत हुए। वह मानते हैं कि यह सब भगवान आनंदेश्वर और माता-पिता के आशीर्वाद का परिणाम है, जिसने उन्हें हर कठिन समय में नई ऊर्जा दी।
गुलशन भाटी अपने शुभचिंतकों का विशेष रूप से आभार व्यक्त करते हैं। उनका कहना है कि जब वह पत्रकारिता से दूर थे, तब भी उनके मित्रों और परिचितों ने उन्हें वैसा ही सम्मान दिया जैसा एक सक्रिय पत्रकार को दिया जाता है। उन्होंने यह कहावत गलत साबित की कि लोग केवल उगते सूर्य को नमस्कार करते हैं। बल्कि उन्होंने अस्त होते सूर्य को भी उसी श्रद्धा से प्रणाम किया और बराबर स्नेह दिया।
करीब तीन दशक से अधिक के इस सफर में उन्होंने पत्रकारिता के हर पहलू को करीब से जिया है। लेखन, संपादन, रिपोर्टिंग और डिजिटल पत्रकारिता में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि पत्रकारिता में धैर्य, साहस, ईमानदारी और निष्ठा ही सबसे बड़ी पूंजी हैं। उनके जीवन की यात्रा नई पीढ़ी को प्रेरित करती है कि यदि कलम सच्चाई के लिए चले तो वह समाज और राष्ट्र दोनों का भविष्य बदल सकती है।
आज गुलशन कुमार भाटी केवल एक वरिष्ठ पत्रकार ही नहीं बल्कि इटावा की ईमानदार पत्रकारिता के ध्वजवाहक हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद यदि कोई पत्रकार अपने मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करता तो उसकी पहचान हमेशा चमकती रहती है। आने वाली पीढ़ियां उनकी पत्रकारिता को आदर्श मानकर आगे बढ़ेंगी, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।