10मई 1857 ई0 को मेरठ छावनी मे फूटी विद्रोह की आग दो दिन बाद ही यानी 12 मई को इटावा तक आ पहुंची। उस समय जिले में 9 नम्बर देशी सैनिक टुकड़ी और 8 नम्बर सवार सेना के कुछ सिपाही तैनात थे। विद्रोह की जानकारी मिलते ही इन देशी सैनिकों में भी कानाफूसी शुरू हो गयी। कलेक्टर ह्यूम को वस्तुस्िथति भांपते देर न लगी। उन्होंने इन देशी सैनिकों को जिले के प्रमुख राजमार्गो पर पहरा देने के लिये तैनात कर दिया और उन्हें ओदश दिया कि इधर से कोई भी संदिग्ध व्यक्ित गुजरता मिले तो उसे तुरन्त गिरुफ्तार कर लिया जाये। 16 मई 1857 की आधी रात को सात हथियार बंद सिपाही इटावा की सड़क पर शहर कोतवाल ने पकड़े । ये मेरठ के पठान के विद्रोही थे और अपने गांव फतेहपुर लौट रहे थे।ह्यूम साहब को सूचना दी गयी तब उन्हें कमाण्िडंग अफसर कार्नफील्ड के सामने पेश किया गया। विद्रोहियों ने कार्नफील्ड पर गोली चला दी । कार्नफील्ड तो बच गये लेकिन उनके आदेश पर 4 को गोली मार दी गयी। इस गोलीवारी में 3 विद्रोही भाग निकले।
इटावा में 1857 ई0 के विद्रोह की स्िथति भिन्न थी। इटावा के राजपूत विद्रोहियों का खुलकर साथ नहीं दे पा रहे थे। स्थानीय सैनिकों के साथ मेवाती और दूसरी स्थानीय जातियां मिल गयी थीं । राजपूत जमींदारों की स्िथति बीच की थी। कुछ विद्रोहियों का साथ देना चाहते थे और कुछ अंग्रेजों का, परन्तु खुलकर किसी के भी साथ नहीं आ रहे थे। ह्मूम को परेशानी यह थी कि वे किस पर विश्वास करें और किस पर न करें। ह्मूम के विश्वस्त राजपूत इस समय आगरा में थे या फिर कानपुर में। आन्दोलन लगातार तीव्र हो रहा था। विद्रोही सैनिकों के साथ स्थानीय जनता भी हो गयी थी। सड़को पर राहजनी हो रही थी, अंग्रेजों की जान को हर तरफ खतरा था।