दरअसल भौगोलिक दृष्टि ये यह जिला क्रांतिकारियों के लिये बड़ा ही उपयुक्त साबित हुआ था। क्योंकि यहां यमुना – चंवल के घने बीहड़ों में शरण लेकर अंग्रेजों के विरूद्ध युद्ध की तैयारी करने में उन्हें काफी सुविधा हुई। देश के विभिन्न स्थानों से भागे विद्रोही सैनिकों में अधिकांश ने इन्हीं बीहड़ों में आकर शरण ली थी और यहां के क्रांतिकारियों से मिलकर एक ऐसी जबरदस्त छापामार सेना का गठन किया था जो लगभग एक वर्ष तक अंग्रेज सरकार के लिये कड़ी चुनौती बनी रही और जिसको कुचलने के लिये उसे एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। उस समय इन जाबांज क्रांतिकारियों का दमन करने की जिम्मेदारी तत्कालीन कलेक्टर ए0 ओ0 ह्यूम को सौंपी गई।
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