इटावा की शान है जमुनापारी बकरी, इंडोनेशिया के लोग मानते है इसे गुडलक बकरी
यूं तो इस धरा पर अनेकों पशु विचरण करते हैं भारत देश में गाय को माता का दर्जा प्रदान है और उसे देश का हिन्दू समाज बडे़ आदर के साथ पूजता भी है, लेकिन शायद ही ऐसा कोई पशु होगा जिसे विदेशों में समृद्ध और सौभाग्यशाली तथा गुडलक माना जाता हो जितना इटावा जिले की जमुना और चम्बल के बीच की पट्टी चकरनगर और सहसों के बीहड़ों में पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की बकरी को प्राप्त है, जिसे जमुनापारी कहा जाता है। खास बात यह है कि इस बकरी की प्रजाति किसी अन्य स्थान पर इटावा को छोड़ कर पाई भी नहीं जाती़।
जमुनापारी बकरी लम्बी चौड़ी कद काठी की होती है इसके लम्बे कान होते हैं, जिनकी लम्बाई 25 से 29 सेमी होती है। पीछे पुट्ठों पर बड़े. बड़े बाल होते हैं। सफेद रंग की इस बकरी की पहचान भी बेहद आसान है। नाक रोमन नोज होती है जिसे देख कर जानकार तुरंत ही इसे पहचान लेते हैं।
यह बकरी सुडौल और स्वस्थ भी होती है जो अन्य बकरियों की अपेक्षा सुंदर दिखती हैं। इस जमुनापारी बकरी की प्रजनन उम्र डेढ साल होती है और यह एक वर्ष में एक ही बच्चा देती है।
जमुनापारी बकरी का बजन भी जल्दी बढता है इसकी ऊंचाई लम्बाई भी अन्य बकरियों की अपेक्षा अलग हटकर होती है। खासियत यह है कि यह एक से लेकर पांच लीटर दूध देती है। बात खान पान की करें तो जमुनापारी बकरी को बेर, बबूल, छीकरा, पीपल,अर्द्ध, बटभड़, पाकड़ एंव जंगल जलेबी कुछ ज्यादा ही पसंद है जो बीहड़ में ही पाये जाते हैं।
इस बकरी की एक खास विशेषता यह भी है कि ये चारा आगे के दोनों पैर उठाकर चरती हैं। पहले ये चराई पर निर्भर थी लेकिन अब खूंटे से बंधकर भी अपना पेट भरती है इसके अलावा इन्हे अरहर चना और बाजरा तथा सानी भी इनके पालनहार इन्हें अच्छी मात्रा में दूध मिलने की खातिर खाने को देते हैं। इस बकरी को पालने से हर तरह का लाभ है और इनका दूध भी मानव शरीर के लिए बहुत उपयोगी होंता है। खास बात ये है कि इस बकरी के कमरे में क्षय रोगी (टी.बी.) को लिटाने पर बीमारी को थामने में मदद मिलती है।
विदेशों में जमुनापारी बकरी को कितना सम्मान मिलता उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि उसे गुडलक बकरी का दर्जा तो मिला हुआ ही साथ ही सम्मान के रूप में उनके स्टेचू भी वहां की सरकारों ने लगवाये हैं। इंडोनेशिया इसका उदाहरण है। http://www.etawajaya.com/ बेबसाइट से पता चला है कि जब इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो 1947 में भारत दौरे पर आये यहां आये और यहां इन बकरियों को देखा तो बकरी के कुछ बच्चे अपने साथ ले गये थे।
वहां के किसानों को इसका दूध बेहद पौष्टिक लगा और सौभाग्य और शांति प्रदान करने वाला लगा। वर्ष 1956 में जब इंडोनेशिया में ज्वालामुखी का विष्फोट हुआ तो इससे करीब एक हजार से ज्यादा लोग अकाल मौत का शिकार हो गये लेकिन बचे वही व्यक्ति जिनके पास जमुनापारी बकरियां थीं। इनकी संख्या 30 थी। तभी से इसे गुडलकबकरी माना जाने लगा । विदेशों में यह बकरी इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों में पाई जाती है।