इटावा की धरती ने सदैव ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व दिए हैं जिन्होंने शिक्षा, संस्कृति और समाज को नई दिशा दी। इन्हीं में एक नाम है शिखर चतुर्वेदी, जो आधुनिक शिक्षा को भारतीय मूल्यों से जोड़ने के मिशन में अग्रणी हैं। उन्होंने अपने समर्पण और नवाचार से शिक्षा जगत में नई पहचान स्थापित की है।

3 मार्च 1986 को इटावा में जन्मे शिखर चतुर्वेदी के पिता मुकेश चतुर्वेदी और माता मनीषा चतुर्वेदी ने उन्हें संस्कार, अनुशासन और परिश्रम का अद्भुत वातावरण दिया। पारिवारिक शिक्षा और मूल्यों ने उनके भीतर सेवा, नेतृत्व और समर्पण की भावना को विकसित किया, जो आगे चलकर उनके जीवन का आधार बनी।

निजी जीवन में वे एक आदर्श पारिवारिक व्यक्ति हैं। उनकी पत्नी रूचि चतुर्वेदी और पुत्र विवान चतुर्वेदी उनके जीवन की प्रेरणा हैं। वे कहते हैं कि परिवार से मिला संतुलन ही व्यक्ति को सफल बनाता है। उनके जीवन में परिवार, शिक्षा और समाज तीनों का गहरा सामंजस्य झलकता है।

शिखर चतुर्वेदी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सनशाइन स्कूल, पचराहा, कुंज, इटावा से प्राप्त की। यह वही संस्थान है जहाँ आज वे बतौर निदेशक-प्रबंधक सेवा दे रहे हैं। यह विद्यालय उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है — जहाँ वे आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कार और संस्कृति के समन्वय की दिशा में कार्यरत हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में गहरी रुचि रखने वाले शिखर चतुर्वेदी ने बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी (बी.टेक) और मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एम.बी.ए.) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। तकनीकी दक्षता और प्रबंधकीय कौशल का यह संगम उन्हें आधुनिक शिक्षा की चुनौतियों को समझने और नवाचार को लागू करने की अद्भुत क्षमता प्रदान करता है।

उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से बी.टेक में स्वर्ण पदक हासिल किया। यह उपलब्धि न केवल उनकी मेधा का प्रमाण है, बल्कि शिक्षा के प्रति उनके अनुशासन और दृष्टिकोण को भी दर्शाती है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि निरंतर प्रयास और दृढ़ निश्चय से हर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

पेशेवर जीवन की शुरुआत में उन्होंने एरिक्सन कम्पनी में व्यावसायिक विश्लेषक (बिज़नेस एनालिस्ट) के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्हें प्रबंधन और तकनीक का व्यावहारिक अनुभव मिला। तत्पश्चात उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय संगठन में शिक्षा प्रशासन के क्षेत्र में योगदान दिया, जिससे उन्हें शिक्षण प्रणाली की गहराई से समझ प्राप्त हुई।

वर्तमान में वे सनशाइन स्कूल, पचराहा, कुंज, इटावा के निदेशक-प्रबंधक हैं। उनके नेतृत्व में विद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं रहा, बल्कि व्यक्तित्व विकास का भी माध्यम बन गया है। वे छात्रों को आधुनिक ज्ञान के साथ भारतीय संस्कृति, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी के मूल्य सिखाते हैं।

उनका दृढ़ विश्वास है कि “शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिकों का निर्माण है।” इसी सोच के तहत वे विद्यालय में ऐसी शिक्षण पद्धतियाँ लागू कर रहे हैं जो बच्चों के बौद्धिक, भावनात्मक और चारित्रिक विकास को समान रूप से प्रोत्साहित करें और उन्हें समाज के प्रति संवेदनशील बनाएं।

उनके नेतृत्व में सनशाइन स्कूल ने शिक्षा की गुणवत्ता, अनुशासन और नवाचार में नई ऊँचाइयाँ प्राप्त की हैं। उन्होंने डिजिटल अध्ययन, परियोजना-आधारित शिक्षण और संस्कार-केंद्रित गतिविधियों को शिक्षण का हिस्सा बनाया। विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, रचनात्मकता और समाजसेवा की भावना को निरंतर बढ़ावा दिया।

उनके उत्कृष्ट कार्यों को अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों ने सराहा। भारत विकास परिषद ने वर्ष 2025 में उन्हें “शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्टता पुरस्कार” से सम्मानित किया। उसी वर्ष दैनिक जागरण द्वारा उन्हें “प्रतिभा सम्मान” प्रदान किया गया। ये सम्मान उनके दूरदर्शी नेतृत्व और शिक्षा में योगदान के साक्षी हैं।

वर्ष 2024 में इटावा सफारी पार्क ने उन्हें “शिक्षा सशक्तिकरण में योगदान” के लिए सम्मानित किया। वर्ष 2023 में एजुकेशनल एण्ड मैनेजमेंट फोरम द्वारा उन्हें “स्ट्रेटेजिक एण्ड इनोवेटिव थिंकर अवार्ड” प्रदान किया गया। यह सम्मान उनके रणनीतिक दृष्टिकोण और शिक्षा में नवाचार की समझ का प्रमाण है।

वर्ष 2022 में चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ने उन्हें “यंग एण्ड डायनेमिक एंटरप्रेन्योर” की उपाधि दी। जन चेतना समिति (गैर-सरकारी संस्था) ने 2021 में उन्हें राज्य स्तरीय “शिक्षा प्रवक्ता” नियुक्त किया। 2019 में अवंतिका एजुकेशन एन.जी.ओ. ने उन्हें “सबसे युवा निदेशक पुरस्कार” से नवाज़ा।

वे मानते हैं कि शिक्षण केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि बच्चों में सोचने, समझने और समाज के लिए कुछ करने की भावना जागृत करनी चाहिए। इसलिए वे हर विद्यार्थी को अपनी विशिष्टता पहचानने, आत्मनिर्भर बनने और समाज के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं।

आज शिखर चतुर्वेदी न केवल इटावा के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने सिद्ध किया है कि जब शिक्षा में दृष्टि, नवाचार और संस्कृति का संगम होता है, तब समाज में नई रोशनी फैलती है। उनके नेतृत्व में शिक्षा का अर्थ सिर्फ ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन का सच्चा मार्गदर्शन बन गया है।


