बकेवर:- शरद पूर्णिमा के अवसर पर महेवा विकास खंड के बकेवर, लखना सहित ग्रामीण क्षेत्रों में टेसू-झेंझी का विवाह पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। बच्चों ने एकत्रित धन से रात के समय इन प्रतीकात्मक विवाहों का आयोजन किया।
यह अनोखी लोक प्रथा दशहरा पर्व से शुरू होती है, जब रामलीला चल रही होती है। तब से लेकर शरद पूर्णिमा तक गांव-गलियों और कस्बों में टेसू-झेंझी के पारंपरिक गीतों की गूंज सुनाई देती है। यह परंपरा मुख्य रूप से ब्रज और बुंदेलखंड के इलाकों में प्रचलित है।
शाम होते ही बकेवर व लखना नगर सहित महेवा विकास खंड के ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे-बच्चियां टेसू-झेंझी लेकर टोलियों में निकल पड़ते हैं। वे मोहल्लों में घर-घर जाकर ‘टेसू अटर करें, टेसू बटर करें, टेसू लेइ के टरें’, ‘मेरा टेशू यही अडा, खाने को मांग दही बड़ा’ और ‘मेरी झेझी को रचो है, ब्याह, ब्याह के लिए पैसा देव’ जैसे पारंपरिक गीत गाते हैं। इन गीतों के बदले उन्हें 5-10 रुपये मिलते हैं, जिन्हें वे विवाह के लिए इकट्ठा करते हैं।
कथा के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को ही टेसू कहा जाता है। लखना के समीपवर्ती ग्राम ईकरी, असदपुर, करौंधी, नगला कले, मानपुरा, दुर्गापुरा, सहित नगर लखना के पक्का तालाब, ठाकुरान मुहाल, कहारान मुहाल सहित बकेवर नगर के इटावा रोड व औरैया रोड सहित भर्थना रोड के मुहल्लों में टेसू झेंझी की शादियां वैदिक रीति रिवाज के साथ आज रात में सम्पन्न कराई जा रही हैं। इस प्रकार, यह लोक उत्सव प्राचीन भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। शहरी इलाकों में पाश्चात्य संस्कृति और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण यह उत्सव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।

