Monday, November 17, 2025

बाल मजदूरी का कड़वा सच चंद पैसों की कीमत पर बुझ गया एक मासूम का दीपक

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जनपद इटावा के इकदिल थाना क्षेत्र में बाल मजदूरी की कड़वी सच्चाई एक बार फिर सामने आई, जब शेखूपुर जखोली से इधौआ रोड पर नई रेलवे लाइन के पुल के नीचे एक ट्रैक्टर व थ्रेसर के पलटने से 12–13 वर्षीय कुश (छोटू), पुत्र अरविंद कुमार निवासी इधौआ की दर्दनाक मौत हो गई। हादसे में तीन से चार अन्य नाबालिग बच्चे भी घायल हुए, जो खेतों में मजदूरी करने गए थे।

यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि बड़ा सवाल खड़ा करती है कि आखिर बाल मजदूरी पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है। ट्रैक्टर और थ्रेसर मालिक अपनी मजदूरी लागत कम करने के लिए 10–15 वर्ष तक के बच्चों को काम पर लगाते हैं, जो कानून के साथ-साथ मानवता के भी खिलाफ है। बाल मजदूर बच्चों से धान काटने, गेहूं कटाई, आलू खुदाई जैसे जोखिम भरे काम करवाए जाते हैं, जिससे उनके जीवन को हर पल खतरा बना रहता है।

हादसा यह भी संकेत देता है कि कई माता-पिता भी मजबूरी या अनजाने में अपने मासूम बच्चों को हर तरह के काम पर भेज देते हैं। थ्रेसर कटाई से लेकर खेतों में कठिन मजदूरी तक, 12–13 साल के बच्चे बड़ी संख्या में खेतों में काम करते नजर आते हैं, जो समाज के लिए एक शर्मनाक स्थिति है।

कुश की मौत ने एक बार फिर दिखा दिया कि पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चों को मजदूरी पर भेजना उनके बचपन, उनके भविष्य और उनके जीवन के साथ सीधा खिलवाड़ है। यह केवल प्रशासन या कानून की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज और परिवारों को मिलकर सोचना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। बाल मजदूरी पर रोक तभी लग सकेगी, जब समाज, अभिभावक और जिम्मेदार लोग इस गंभीर समस्या को समझें और बच्चों को सुरक्षित, शिक्षित और सम्मानजनक भविष्य देने की दिशा में कदम उठाएं।

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