Thursday, July 3, 2025

काली वाहन मंदि‍र-देवी भक्‍तों का प्रमुख केन्‍द्र

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शक्‍ि‍त मत में दुर्गा-पूजा के प्राचीनतम  स्‍वरूप की अभि‍व्‍यक्‍ि‍त है इटावा कालीवाहन मन्‍दि‍र । इटावा के गजेटि‍यर में इसें काली  भवन का नाम दि‍या गया है। यमुना के तट के नि‍कट  स्‍ि‍थत  यह मंदि‍र  देवी भक्‍तों  का प्रमुख केन्‍द्र है। इष्‍ट अर्थात शैव क्षेत्र होने के  कारण इटावा में शि‍व मंदि‍रों  के साथ दुर्गा के मंदि‍र भी बड़ी  सख्‍या में हैं।

महाकाली,महालक्ष्‍मी व महासरस्‍वती की है प्रति‍मायें‍

मंदि‍र में स्‍थि‍त मूर्ति‍ शि‍ल्‍प 10 वीं से बारहवीं शताब्‍दी  के मध्‍य का है। वर्तमान मंदि‍र  का नि‍र्माण  बीसवीं शताब्‍दी की देन है मंदि‍र  में देवी की तीन मूर्ति‍यॉ  है- महाकाली, महालक्ष्‍मी तथा महासरस्‍वती। महाकाली का पूजन  शक्‍ि‍त पूजन शक्‍ि‍त  धर्म के  आरम्‍ि‍भक  रूवरूप की देन है। मार्कण्‍डेय पुराण एवं अन्‍य पौराणि‍क कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्‍भ में काली थी एक बार के भगवान शि‍व के साथ  आलि‍गंनबद्ध थीं तो शि‍वजी ने परि‍हास करते हुऐ कहा कि‍  ऐसा लगता है जैसे श्‍वेत चंदन बृक्ष में काली नागि‍न  लि‍पटी  हुई हो ।  पार्वती जी को  क्रोध आ गया और उन्‍होंने  तपस्‍या के द्वारा  गौर वर्ण प्राप्‍त  कि‍या। मंदि‍र  परि‍सर  में एक मठि‍या में शि‍व दुर्गा  एवं उनके परि‍वार की भी प्रति‍ष्‍ठा है।  मठि‍या के बाहर के बरामदे का नि‍र्माण न्‍यायमूर्ति‍ प्रेमशंकर  गुप्‍त  के पूर्वजों ने कि‍या है।

गर्भग्रह खोले जाने पर पूजि‍त मि‍लतीं हैं मूर्तियां

महाभारत में उल्‍लेख है कि‍ दुर्गाजी  ने जब महिषासुर तथा शुम्‍भ-नि‍शुम्‍भ का बध कर दि‍या तो उन्‍हें काली, कराली,काल्‍यानी आदि‍  नामों से भी पुकारा जाने लगा। कालीवाहन मंदि‍र के बारे में जनश्रुति‍ है कि‍ प्रात: काल जब भी मंदि‍र  का गर्भग्रह  खोला जाता है तो मूर्ति‍यॉ पूजि‍त मि‍लती हैं।  कहा जाता है कि‍ द्रोणाचार्य  का पुत्र अश्‍वत्‍थामा अव्‍यक्‍त रूप में  आकर इन मूर्ति‍यों की पूजा करता है। कालीवाहन मंदि‍र श्रद्धा का केन्‍द्र है।  नवरात्रि के दि‍नों में यहां बड़ी संख्‍या में श्रृद्धालु आते हैं।‍

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Ashish Bajpai
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