इटावा की पवित्र धरा पर यमुना के तट के समीप स्थित काली वाहन मंदिर माँ की अद्भुत शक्ति का ऐसा धाम है जहाँ पहुँचकर हर भक्त का हृदय भक्ति से सराबोर हो जाता है। यहाँ की हर हवा की लहर, हर ध्वनि, हर आहट मानो माँ की उपस्थिति का आभास कराती है। यह मंदिर स्थानीय जनश्रुतियों में काली भवन नाम से प्रसिद्ध है और इसे शक्ति पूजा का प्राचीन स्वरूप माना जाता है।

मंदिर में माँ के तीन स्वरूप – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती – एक ही शिलापट्ट पर विराजमान हैं। यह त्रिदेवी स्वरूप शक्ति के तीनों आयामों का प्रतीक है। महाकाली संहार और साहस की अधिष्ठात्री हैं, महालक्ष्मी ऐश्वर्य और सम्पन्नता देती हैं, वहीं महासरस्वती ज्ञान और विद्या का वरदान प्रदान करती हैं। भक्त मानते हैं कि इन तीनों देवियों की कृपा से जीवन पूर्ण, संतुलित और सफल बनता है।

किवदंतियों के मुताबिक जब भगवान भोलेनाथ सती का शव कंधे पर रखकर तांडव कर रहे थे, तब ब्रह्मांड को बचाने हेतु भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया और सती के अंग-प्रत्यंग पृथ्वी पर बिखर गए। कहा जाता है कि सती की बाँह इसी स्थान पर गिरी थी, इसी कारण यह स्थल शक्ति का पावन पीठ बना। भक्त इस कथा को सुनकर श्रद्धा से भर उठते हैं और मानते हैं कि यहाँ माँ की उपस्थिति आदि काल से है।

जनश्रुति यह भी कहती है कि महाभारत काल में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। उसी समय से यहाँ देवी की त्रिमूर्ति पूजित है और कालांतर में यह स्थान शक्ति-भक्ति का अद्भुत केंद्र बन गया। भक्त मानते हैं कि इसी ऐतिहासिक आधार के कारण यह मंदिर अद्वितीय और अलौकिक है।

मंदिर से जुड़ी एक और कथा अश्वत्थामा की है। महाभारत युद्ध के दौरान जब अश्वत्थामा के मस्तक में गंभीर घाव हुआ, तो वे माँ के दरबार में ब्रह्म बेला में उपस्थित होकर शरण लेते थे। विश्वास है कि वे मंदिर में प्रज्वलित दीपक का तेल अपने घाव पर लगाकर राहत पाते थे। आज भी भक्त मानते हैं कि अश्वत्थामा अदृश्य रूप में प्रतिदिन माँ की आराधना करने आते हैं और गर्भगृह में ताज़े पुष्प उनकी उपस्थिति का प्रमाण हैं।

नवरात्रि के दिनों में यह धाम दिव्यता और भक्ति से आलोकित हो उठता है। भोर से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है, माँ के जयकारे गूँजते हैं और दीपों की लौ अंधकार को मिटाकर चारों ओर भक्ति-रस का वातावरण बना देती है। यहाँ पहुँचकर हर कोई स्वयं को माँ की शरण में पाता है।

भक्तों का विश्वास है कि माँ शीघ्र ही प्रसन्न होकर उनके जीवन की बाधाएँ दूर कर देती हैं। कोई नारियल चढ़ाकर मनोकामना करता है तो कोई चुनरी और पुष्प अर्पित करता है। विद्यार्थी ज्ञान के लिए, व्यापारी समृद्धि के लिए और परिवारजन सुख-शांति के लिए यहाँ आकर नतमस्तक होते हैं।
काली वाहन मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि शक्ति का अनुभव कराने वाला धाम है। गर्भगृह में प्रवेश करते ही साधक के भीतर ऊर्जा का ऐसा संचार होता है मानो माँ स्वयं उसकी आत्मा में विराज गई हों। इस अनुभव को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, यह केवल हृदय से ही महसूस किया जा सकता है।
समय-समय पर माँ भगवती की कृपा से यह मंदिर निरंतर विकसित होता रहा है। भक्त मानते हैं कि माँ स्वयं अपनी भव्यता बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। यही कारण है कि मंदिर हर युग में और अधिक दिव्य, भव्य और पूज्य होता चला गया है। यमुना के पावन तट पर स्थित यह मंदिर न केवल इटावा बल्कि संपूर्ण बुंदेलखंड और यमुना घाटी का आध्यात्मिक प्रकाशस्तंभ है। यहाँ आकर हर भक्त अपनी पीड़ा भूल जाता है और माँ के चरणों में शांति, आश्वस्ति और साहस का संचार पाता है।

