लखना/बकेवर:- नगर लखना में आयोजित रामलीला महोत्सव के ग्यारहवें दिन शबरी मिलन, राम-सुग्रीव मित्रता और बाली वध का भव्य मंचन किया गया। इटावा के समाजसेवी मनीष यादव पतरे ने आरती कर इसका शुभारंभ किया।
मंचन के पहले दृश्य में, प्रभु श्रीराम और भाई लक्ष्मण माता सीता की खोज में जंगल में भटक रहे थे। उन्हें दूर से ‘जय श्रीराम’ की आवाज सुनाई दी। पास जाने पर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला कुटी में प्रभु नाम का जप कर रही थी।
कुटी में प्रवेश करते ही महिला ने अपना परिचय प्रभु भक्त शबरी के रूप में दिया। श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर शबरी उनके चरणों में लेट गईं। उन्होंने जल से उनके पांव पखारे, आसन पर बैठाया और सरस कंद मूल फल अर्पित किए। प्रभु ने प्रेमपूर्वक उन्हें ग्रहण किया और शबरी को नौ प्रकार की भक्ति के बारे में बताया। शबरी ने श्रीराम को अपने झूठे बेर भी खिलाए, जिसे प्रभु ने सहर्ष स्वीकार किया।

वहीं, ऋष्यमूक पर्वत पर विराजमान वानर राज सुग्रीव ने राम और लक्ष्मण को आते देख भयभीत हो गए। उन्होंने हनुमान जी को ब्राह्मण का रूप धारण कर उनके बारे में पता लगाने के लिए भेजा। ब्राह्मण रूपी हनुमान ने प्रभु श्रीराम से पूछा कि भूमि कठोर है और उनके पैर कोमल है।
श्रीराम ने बताया कि एक निशाचर ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया है। यह वचन सुनकर हनुमान उनके चरणों में गिर गए। प्रभु की सारी बातें समझकर, हनुमान दोनों भाइयों को कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले गए और उन्हें सहायता का आश्वासन दिया।
राम के पूछने पर सुग्रीव ने अपने भाई बाली के बारे में बताया कि मायावी को मारकर लौटने के बाद बाली ने उनकी स्त्री और धन छीन लिया था, और उन्हें नगर से भगा दिया था। इसी कारण वे ऋष्यमूक पर्वत पर निवास कर रहे थे।
राम के पूछने पर सुग्रीव ने अपने भाई बाली के बारे में बताया कि मायावी को मारकर लौटने के बाद बाली ने उनकी स्त्री और धन छीन लिया था, और उन्हें नगर से भगा दिया था। इसी कारण वे ऋष्यमूक पर्वत पर निवास कर रहे थे।
बाली को मारने के लिए राम-लक्ष्मण चले गए। पहले दिन, दोनों भाइयों की छवि एक समान होने के कारण राम बाली को मार नहीं पाए। दूसरे दिन, सुग्रीव के गले में पहचान के लिए मोती की माला पहनाकर बाली का वध किया गया। इसके बाद सुग्रीव को किष्किंधा का राजा और बाली पुत्र अंगद को युवराज बनाया गया।

