‘तपोभूमि है इटावा की धरती’ यह कथन केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि इस ऐतिहासिक जनपद की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक विरासत का जीवंत प्रमाण है। इटावा का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही गौरवशाली भी। यह जनपद वर्तमान में कानपुर कमिश्नरी का हिस्सा है, जबकि यह अतीत में आगरा और इलाहाबाद कमिश्नरियों में भी शामिल रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार, इटावा की कुल जनसंख्या 15,79,160 है। जनपद में कुल 6 तहसीलें और 8 ब्लॉक हैं, साथ ही कानून-व्यवस्था के संचालन हेतु कुल 20 थाने और एक महिला थाना भी कार्यरत हैं।
इस जनपद की महत्ता मात्र प्रशासनिक दृष्टि से नहीं, बल्कि इसकी सांस्कृतिक जड़ों में भी गहराई से रची-बसी है। कहा जाता है कि इस भूमि पर प्राचीन काल से ही योग, तप और साधना की परंपरा रही है। यमुना के तटों पर स्थित इष्टिकापुरी, आज का इटावा, उन स्थलों में शामिल रहा है जहां साधना और तांत्रिक क्रियाएं संपन्न होती थीं। यहाँ के हर घाट, हर मंदिर, और यहाँ की हर गली में पुरातन साधना की गूंज सुनाई देती है, जो इसे एक तपोभूमि में परिवर्तित कर देती है।
इटावा के धार्मिक महत्व को इस तथ्य से और बल मिलता है कि यहाँ शक्ति और शिव की उपासना के कई प्रमुख स्थल हैं। कालीवाहन मंदिर, खटखटा बाबा का समाधि स्थल, श्री विद्या पीठ, कुंडेश्वर, भारेश्वर, नीलकंठेश्वर जैसे मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र हैं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा के प्राचीन स्रोत भी हैं। बलरई के बीहड़ों में स्थित ब्रह्माणी मंदिर शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु साधना करते हैं।
इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह जानकारी अत्यंत रोचक होगी कि इटावा वह पावन भूमि है जहाँ पांडवों ने अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था। यही नहीं, भीम ने बकासुर राक्षस का वध भी यहीं किया था। हिडिंबा और बकासुर जैसे राक्षसों के प्रभाव क्षेत्र वाले वन भी इसी क्षेत्र में फैले हुए थे, और उन्हीं वनों के मध्य बैठकर पांडवों ने महाभारत युद्ध की रणनीति बनाई थी।
इष्टिकापुरी का उल्लेख महाभारत के समय में एक महत्वपूर्ण तपस्थली के रूप में होता है, जहाँ पांडव वनवास और अज्ञातवास के दौरान बार-बार आते रहे। यहीं महर्षि धौम्य के आश्रम में द्रौपदी ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षय पात्र प्राप्त किया था, जो उन्हें कठिन समय में अन्न की चिंता से मुक्त करता था। यह स्थान केवल साधना का केंद्र ही नहीं, बल्कि पांडवों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्त्रोत भी बना।
इटावा का यह गौरवशाली अतीत केवल कथाओं और किवंदतियों में सीमित नहीं है, बल्कि इसके प्रमाण आज भी यहाँ के भूगोल, मंदिरों और आश्रमों में मिलते हैं। महर्षि धौम्य का आश्रम, जहाँ से अनेक शिष्य शिक्षा ग्रहण कर भारत भर में ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने निकले, कभी शिक्षा का एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय केंद्र माना जाता था। उपमन्यु और आरुणि जैसे महान शिष्य यहीं से तप और ज्ञान की दीक्षा लेकर निकले।
धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से इटावा की पहचान केवल एक ऐतिहासिक जनपद के रूप में नहीं, बल्कि एक तपोभूमि के रूप में बन चुकी है। यहाँ के गांव, कस्बे और नगरों में आज भी वह प्राचीन आभा देखी जा सकती है, जो इसे विशेष बनाती है। यह वह भूमि है जहाँ अध्यात्म और वीरता दोनों ने समान रूप से जन्म लिया और विकसित हुए।
जनपद में स्थित पौराणिक मंदिर और साधना स्थल आज भी श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन स्थलों पर केवल पूजा नहीं होती, बल्कि यहां आने वाला हर व्यक्ति आत्मिक शांति और चेतना का अनुभव करता है। इन पवित्र स्थानों की उपस्थिति न केवल जनपदवासियों के लिए गौरव का विषय है, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र है।
यदि आज के समय में इटावा को केवल एक प्रशासनिक या भौगोलिक इकाई के रूप में देखा जाए तो यह उस गहराई और गरिमा को अनदेखा करना होगा जो इसकी आत्मा में समाई हुई है। यह भूमि केवल जनसंख्या, थानों और ब्लॉकों से नहीं जानी जाती, बल्कि इसके ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक मूल्यों से पहचानी जाती है। पांडवों की योजना भूमि, महर्षियों की तपस्थली और शक्तिपीठों की धरती — यही है इटावा की असली पहचान।