Saturday, May 4, 2024
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राष्ट्रवादी स्वर : राष्ट्रकवि रामदास वर्मा निर्मोही

आपकी राय, इटावा की राय, अपना मत जरुर व्यक्त करें

राष्ट्र यज्ञ में सैनिक वन , प्राणों की आहुति डालेगें।
स्वतंत्रता हित विश्व युद्ध में, सावरकर व्रत पालेंगे।।
यह कोई और नही राष्ट्रकवि “बल्लभ” जी के अकेले एक मात्र शिष्य राष्ट्र कवि रामदास वर्मा ” निर्मोही” है जो कांग्रेस के रास्ते जुड़कर देश की आजादी के लिए प्राणों की चिन्ता ना करते हुए तन – मन व धन से सदैव स्वतंत्रता की अलख जगाते हुए रेल की पटरियों को उखाड़ना , बिजली के तारों को काटना , असहयोग आन्दोलन व विदेशी कपड़ों की होली जलाने के साथ साथ होली को जलवाना तथा अन्य त्योहारों मे सहयोगआदि कार्यक्रमों में मुख्य भूमिका निभाते हुए अपनी ओजस्वी वाणी द्वारा राष्ट्र की स्वतंत्रता  में अपनी कविताओं के माध्यम से देश भर मे जोश पैदा भी करते थे।
  ” निर्मोही ” जी के भतीजे प्रमुख समाज सेवी “हरीशंकर पटेल” उप्र की महामहिम राज्यपाल माननीय आनन्दीबेन पटेल जी द्वारा सम्मानित के अनुसार ” निर्मोही ” जी का जन्म सन् 1910 मे हुआ तथा मृत्यु सन् 1946 के अन्त मे हुयी थी आपके पूज्यनीय पिता का नाम  स्व॰ श्री वंशीधर था।
आपकी प्रखर बुद्धि थी, आपको बचपन से पहलवानी के शौखीन थे , अच्छे पहलवानों मे गिनती थी आप कद काठीं से हुस्ट-पुष्ट थे आपकी लम्बाई 6 फुट 8 इंच थी, आप जगदीश विजय नाटक क्लब , पुरविया टोला , इटावा के प्रमुख कलाकारो में से एक थे , आपकी बुलन्द आवाज थी , आप जब तेज बोलते थे लगभग एक किलोमीटर से अधिक दूर तक सुनायी देता था। फिल्म अभिनेता पृथ्वी राजकपूर जी फिल्मों से पहले परसियन स्टाइल के नाटक कम्पनी बना कर खेलते थे , आपने भी आपके साथ नाटक खेला था। आपको राष्ट्र भक्ति का शौक होने के कारण उनके बार बार बुलाने पर भी मना कर दिया ।
 ” निर्मोही ” जी को सन् 1946 में हिन्दू राष्ट्रपति वीर सावरकर जी ने अखण्ड भारत परिषद के अवसर पर हिन्दू राष्ट्र कवि की उपाधि प्रदान करते हुए स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया यह उल्लेख इटावा जनपद के हजार साल की पुस्तक मे है। आपके घर पर वीर सावरकर जी भी आते थे , जो क्रान्तिकारी इटावा से होकर निकलते थे उनकी रुकने खाने तथा आगे के मार्ग की जानकारी आदि आप गोपनीय रखते हुए आगे का मार्ग तथा उनके साथ कई बार तो स्वयं चले जाते थे , लेकिन यह कोट वर्ड के साथ कार्य होता था इतना ही नही आप अपने घर में तथा मुहल्ले की बगियों मे रुकवाया करते थे लोगों को मालूम नही पड़ने देते थे कि आप कौन है।
  राष्ट्रकवि नीरज गोपाल जी ” निर्मोही” जी के शिष्य थे , वह ” निर्मोही ” जी के घर अक्सर आते जाते थे। न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त जी ने ‘ बल्लभ ‘ स्मृति ग्रन्थ , शिशु स्मारक समिति , इटावा मे ” निर्मोही ” जी की तारीफ करते हुए लेख लिखा है ।”इटावा के हजार साल” नामक पुस्तक में स्वतंत्रता सैनानी बताते हुए आपकी कविता भी लिखी है।
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