इटावा। अभी निकाय चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन दावेदार महिलाओं की बढ़ती संख्या खासकर नेताओं की पत्नियों की दावेदारी को लोग हल्के में ही ले रहे हैं।
दावेदारों की होर्डिंग से शहर का शायद ही कोई चौराहा अछूता हो जहां कोई होर्डिंग न लगी हो। सभी यह जानते हैं कि चुनाव की घोषणा होते ही होर्डिंगों को किसी कबाड़ का हिस्सा बनते देर न लगेगी। फिर भी होड़ शहर में ज्यादा से ज्यादा होर्डिंग्स लगवाने की लगी हुई है।
पत्नियों को समाजसेवी बताने का दावा करने वाले पति यदि जरा सी समझदारी दिखाते तो शायद पत्नियां समाजसेवी भी कुछ दिनों में बन जाती और होर्डिंग्स से ज्यादा चर्चा में आ जाती, लेकिन एक दूसरे की देखा देखी सभी दावेदार पत्नियों की होर्डिंग्स लगवाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
प्रचार भी सोशल मीडिया पर किया जा रहा है। ऐसा कोई प्लेटफार्म नहीं है जिस पर प्रचार न किया जा रहा हो। हालांकि यह जिम्मेदारी खुद पतियों ने उठा रखी है। वाट्सएप, फेसबुक प्रचार का सबसे आसान तरीका बने हुए है।
सबसे ज्यादा दावेदारी भाजपा से की जा रही है। इनमें ब्राह्मण समाज से छह और गुप्ता समाज से चार महिलाएं दावा कर रहीं हैं। गुप्ता समाज पूर्व में घोषित ओबीसी सीट से ही दावा करता आ रहा है, इस बार भी कर ही रहा है। एक अन्य दावेदार भी गुप्ता समाज से हैं। हालांकि अध्यक्ष पद की दावेदारी इक्का- दुक्का ओबीसी समाज की और से भी की जा रही है, लेकिन उनकी गिनती कम ही है। इनमें कुछ नेत्रियां भाजपा से हैं, लेकिन इनमें से कुछ पदाधिकारी जरूर हैं, लेकिन इनकी जनता के बीच मे ज्यादा पकड़ हो ऐसा नहीं जान पड़ रहा है।
शायद यही वजह है कि ज्यादातर बुद्धिजीवी वर्ग भी यह मानने लगे हैं कि पोस्टर लगवाने वालों को शायद ही टिकट मिले। निर्दलीय लड़कर भले अपनी भड़ास निकाल लें। कुछ ऐसे दावेदार हैं जो पोस्टर वार पर विश्वास न करके गुपचुप तरीके से अपने मिशन में लगे हुए हैं। उन्हें नाम और काम दोनों का सहारा मिल सकता है। इसलिए वह होर्डिंग बाजी से दूर हैं। कुछ तो भाजपा के वैचारिक संगठन से ताल्लुक रखते हैं।

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