Thursday, March 27, 2025

स्वयं सहायता समूह की महिलाएं लिख रही हैं सफलता की कहानियां

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इटावा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह की कई महिलाएं अपना रोजगार कर न सिर्फ अपने को आत्मनिर्भर बना रही बल्कि अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना कर सफलता की नई -नई कहानियां भी लिख रही हैं। यह महिलाएं आत्मनिर्भर बन अपने घर का सहारा भी बन रही है समूह के माध्यम से कई महिलाएं छोटे-छोटे उद्योग का सफल संचालन कर अपने उत्पादों को बाजार में बेचकर आर्थिक रूप से भी समृद्ध हो रही है।

बकेवर क्षेत्र के ग्राम बेरी खेड़ा की 36 वर्षीय दिव्यांग पदमा कुशवाहा ने भी कोरोना समूह के साथ जुड़कर अपने पैरों पर खड़ी हुई बल्कि एक दर्जन अन्य महिलाओं को भी रोजगार के लिए प्रेरित कर उन्हें भी इस आत्मनिर्भर बनाया।पदमा कुशवाहा 56 प्रकार के अचार अथवा अलग-अलग फलों के मुरब्बा बनाने में पारंगत होकर अपना स्वयं का लघु उद्योग शुरू किया।
पदमा बताती हैं कि विगत वर्ष 2020 से पहले एक प्राइवेट जॉब करती थी। उनके पति गोविन्द कुशवाहा जो दिव्यांग हैं। आगरा में प्राइवेट जॉब करते हैं। लेकिन कोरोना काल के बाद पदमा की नौकरी हाथ में नहीं रही। तो खुद ही कोई काम शुरू किया जाए। कि इसी दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत विगत वर्ष जनवरी 2021 को वह श्रीकृष्ण स्वयं सहायता समूह से जुड़ी और उसने समूह की अध्यक्ष के रूप काम करना शुरू किया। पदमा ने बताया कि अचार और मुरब्बा बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण लिया उसके बाद समूह से 20 हजार का ऋण लेकर आचार मुरब्बा बंनाने का अपना काम शुरू किया। वर्तमान में 56 प्रकार के अचार और अलग-अलग मुरब्बा उनके द्वारा बनाए जा रहे हैं।
उनके अचारों और मुरब्बे में किसी भी तरह का कोई केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। पदमा ने बताया कि अब अपने उत्पादों को बेचने के लिए गाँव से 2 किलोमीटर दूर स्थित लखना में किराये पर लेकर दुकान खोली है।
पदमा बताती है कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत लगाए जाने वाले मेले और प्रदर्शनी में भी अपने उत्पादों को जाकर बेचते हैं और वहां पर हमारे द्वारा तैयार किए गए उत्पादों को विशेष सराहना भी मिली।
पति के दिव्यांग होने से घर का गुजारा करने में समस्या आयी। दो बच्चे हैं जिनकी पढायी का खर्चा भी है।
पदमा बताती है कि उन्होंने अपनी अब तक दस महिलाओं को समूह से जोड़कर रोजगार के लिए प्रेरित किया। आज वे सभी महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी हैं। दस में से कुछ महिलाएं दाल का कार्य कर रही हैं कुछ कढाई का तथा कुछ सिलाई का काम करके अपने व परिवार के लिए जीविकोपार्जन का मार्ग बनी हुईं हैं। क्योंकि शुरुआत में अधिक आय प्राप्त नहीं होती लेकिन धीरे-धीरे लोगों तक पहुँच होने पर काफी सहायता मिल जाती है। पदमा बताती उनके द्वारा बनाए गए विशेष अचार बाँस,सहजन, आंवला,टैंटी,सिंघाड़ा,लहसुन की भी मांग शुरू में बिल्कुल नहीं थी अब लोग धीरे-धीरे स्वाद चखने के बाद इन विशेष अचारों की मांग कर रहे हैं।

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