इटावा नगर पालिका चुनाव में नगर की प्रथम नागरिक बनने की दौड़ में मूल नेत्रियों की अपेक्षा परिवार की महिलाओं के पोस्टर शहर के चौराहों पर ज्यादा लगे दिखाई पड़ रहे हैं।
केवल दो ऐसी महिलाएं हैं जो लगातार दूसरी बार फिर से दावेदारी कर रहीं हैं। इनमें विनीता गुप्ता और सन्नी शर्मा शामिल हैं। 2017 के चुनाव में भाजपा ने विनीता गुप्ता पर दांव आजमाया था। लेकिन उन्हें पराजित होना पड़ा था। खास बात यह है कि विनीता गुप्ता फिर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुकीं हैं। जबकि इनकी पराजय का जिम्मेदार हिन्दू सेवा समिति की प्रत्याशी सन्नी शर्मा को माना जाता है।
इस बार परिस्थितियां काफी बदली हुईं हैं। सन्नी शर्मा के पति प्रदीप शर्मा 2022 के विधान सभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जाहिर तौर पर वह पत्नी का टिकट पक्का कराने के लिए जिस तरह से एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं और क्षेत्र से लेकर प्रदेश के नेताओं की परिक्रमा कर रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि वह पीछे हटने वाले तो नहीं हैं। प्रदीप शर्मा को सांसद प्रो.राम शंकर कठेरिया का समर्थक माना जाता है। लेकिन विधान सभा चुनाव के दौरान भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने से उन्हें विधायक का समर्थक भी माना जाने लगा है।
बात विनीता गुप्ता की करें तो उनके पति और भाजपा जिला महामंत्री अरुण गुप्ता अन्नू ने विधानसभा चुनाव से पूर्व विधायक के खिलाफ जिस तरह से चलाई गई मुहिम का हिस्सा रहे थे। उसे न दोबारा विधायक बनने के बाद सरिता भदौरिया भूल सकीं हैं और न उनके समर्थक भूलें हैं।
लिहाजा ऐसी विकट परिस्थितियों में भाजपा को अपना चेयरपर्सन प्रत्याशी बनाने के लिए गहन मंथन करना होगा। इसके लिए उसे ऐसी महिला पर दांव लगाना होगा, जो अपनी काबिलियत से शहर की सरकार चलाने की कुब्बत रखती हो। उच्च शिक्षा के अलावा उसकी शहर में खुद से पहचान हो। निर्विवाद व स्वच्छ छवि हो। उसे अमुक व्यक्ति की पत्नी, मां, बहु के रूप में न जाना जाए।
सबसे बड़ी बात जो भाजपा के अंदर की अंतर्कलह से दूर, किसी एक गुट की समर्थक न होकर सभी के बीच लोकप्रिय महिला की जरूरत है। तभी भाजपा की नैया किनारे लगने की उम्मीद की जा सकती है।
अन्यथा की स्थिति में फिर से नगर पालिका परिषद में दो कुर्सी पड़ने से इस बार भी कोई रोक नहीं सकेगा। अन्यथा चेयरपर्सन की जगह पति,बेटा, ससुर ही निर्णय लेंगे। जैसा बीते पांच सालों में देखने को मिला।
भाजपा नेतृत्व वैसे भी चौकाने वाले फैसले लेता है। इस बार भी भाजपा ऐसा चेहरा चुनाव मैदान में उतार दे, जो अपनी बेदाग छवि और वाक्पटुता से वोटरों तक अपनी बात आसानी से पहुंचाने में सक्षम हो। भाजपा अभी तक एक ही बार अपना चेयरमैन बना सकी है। इस बार भाजपा अपना चेयरपर्सन बनवाने के लिए क्या जिताऊ और कर्मठ महिला को चुनाव मैदान में उतरेगी। यह सवाल आम जनमानस के मन में अभी से कौंध रहा है। जो नेताओं के परिवार की महिलाओं के चुनाव दावेदारी से अभी ही खासे खफा हैं।
उम्मीद है भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस पर गंभीरता से विचार अवश्य ही करेगा।
चेयरपर्सन बनाने के लिए भाजपा को गहन मंथन की जरूरत – परिवारवाद से ऊपर उठकर कर्मठ महिला को टिकट देने में ही भलाई
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