इटावा-औरैया राजमार्ग पर बकेवर से 3 किमी. दक्षिण दिशा में ऐतिहासिक नगर लखना के समीपवर्ती ग्राम दलीपनगर के जमीदार राव खुमान सिहं के पुत्र राव जसवन्तसिहं ने1857 ई0 के पूर्व लखना के संस्थापक के रूप में माने जाते हैं जिन्होंने लखना के किले तथा ऐतिहासिक आदि शक्ित मां कालिका देवी का विशाल मंदिर बनवाया।
मजार है हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक
कालिका देवी मंदिर का भव्य दरवाजा कोटेदार डिजाइन में बना है जिसकी दीवाले मोटी है और ककइयां ईंट की है। देवी जी की प्रतिमायें काले पत्थर विभिन्न आकृतियों के रूप में 9 मूर्तियॉ कच्चे चबूतरे पर खुले आंगन में स्थापित हैं। मूर्तियों के बगल में ही सैयद बाबा की मजार है जो हिन्दू-मुस्िलम की एकता का प्रतीक है। यहां की एक और विशेषता हैं कि मंदिर का पुजारी अनुसूचित जाति का होता है। चैत्र और क्वार मास की नवमी में अपार भीड़ दर्शनार्थियों की होती है।
बनवाई गई मूर्ति नहीं की जी सकी स्थापित
मंदिर में देवी की मूर्ति बनवाई गयी थी उनकी स्थापना आज तक नहीं हो पायी हैं। वह अलग गर्भगृह में सुरक्षित रखी है जिसका प्राय: श्रृद्धालु दर्शन नहीं कर पाते हैं। इसकी स्थापना अभी तक नहीं हो पायी है।
कालिका देवी मंदिर के ठीक पूरब दिशा में सामने लगभग 3 एकड़ में पक्का तालाब बना है। तालाब में नीचे तक जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियों बनी है। तालाब में पुरूषों के लिए अलग तथा स्ित्रयों के स्नान करने के लिए अलग जनानखाना बना हुआ हैं। तालाब में पानी कभी नहीं सूखता । दर्शनार्थी भी तालाब में स्नान करके मां कालिका देवी का पूजन करते थे। जनानखाने की कलात्मक खिड़कियों स्थापत्य कला की सुन्दरता समेटे हैं। तालाब वर्तमान में गन्दा होता जा रहा हैं।