ग्राम पचदेवरा में चल रही श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ कथा के तृतीय दिवस पर कथा वाचक वेदनारायण दीक्षित जी ने जीवन को बेहतर बनाने के लिए गहन और प्रेरणादायक उपदेश दिए। इस अवसर पर सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, पुरनजनोपाख्यान और जड़भरत कथा जैसी महत्वपूर्ण कथाएँ सुनाई गईं, जिन्होंने श्रोताओं को जीवन के उच्चतम आदर्शों से अवगत कराया।
दीक्षित जी ने सती चरित्र की कथा के माध्यम से बताया कि सती का समर्पण, त्याग और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति और आत्मसमर्पण से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है, और इसके माध्यम से संसार के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। सती ने अपने पिता के अपमान को सहन करते हुए भी अपने पतिव्रता धर्म का पालन किया और अंततः अपने पति शिवजी की पूजा में लीन रहते हुए आत्मदाह कर लिया।
ध्रुव चरित्र की कथा ने श्रोताओं को यह सिखाया कि संकल्प और आत्मविश्वास से कोई भी कार्य असंभव नहीं है। छोटे से बालक ध्रुव की भक्ति और दृढ़ नायकत्व ने उसे भगवान विष्णु से मिलवाया और उसे उच्चतम स्थान दिलवाया। दीक्षित जी ने बताया कि अगर व्यक्ति सच्चे मन से भगवान की भक्ति करता है, तो उसे हर कार्य में सफलता मिलती है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
पुरनजनोपाख्यान की कथा में जीवन के उद्देश्य और मृत्यु के बाद के अनुभवों पर प्रकाश डाला गया। इस कथा में भगवान श्री कृष्ण ने यह दर्शाया कि संसार की नश्वरता को समझकर ही हम वास्तविक सुख की ओर बढ़ सकते हैं। साथ ही जड़भरत की कथा में उन्होंने बताया कि संसारिक मोह और कर्मों के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान की भक्ति में मनन करना चाहिए।