प्रयागराज के चाँदी गांव में 30 सितम्बर 1946 को जन्मे डॉ. विद्याकांत तिवारी एक साधारण परिवार से आते है। उनके पिता का निधन उस समय हो गया जब उनकी उम्र मात्र एक वर्ष की थी। उनके पितामह पं संत प्रसाद तिवारी, और माता स्वर्गीया राम कली, ने उन्हें नैतिकता, अनुशासन और शिक्षा के महत्व से परिचित कराया। साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े डॉ. तिवारी ने अपनी लगन और परिश्रम से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान हासिल किया है।
डॉ. विद्याकांत तिवारी का पारिवारिक जीवन बेहद प्रेरणादायक है। उनकी पत्नी, स्वर्गीया श्रीमती चन्द्र कला, उनकी जीवन संगिनी थीं। उनकी संतानों ने भी शिक्षा और करियर में ऊंचाइयां हासिल कीं, उनकी पुत्री डॉ. निवेदिता अपनी प्रतिभा के बल पर विदेश में सेवारत है। डॉ. तिवारी के तीन पुत्र है विवेक तिवारी, कंपनी सेक्रेटरी के रूप में दिल्ली में सेवाए दे रहे है, डॉ. विश्वास तिवारी, प्रवक्ता, डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर, विनीत तिवारी: यू.एस.ए. में इंजीनियर के रूप में कार्यरत है
डॉ. विद्याकांत तिवारी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई। बाद में, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक (बी.ए.) और स्नातकोत्तर (एम.ए.) की शिक्षा पूरी की। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी लगन ने उन्हें डी.फिल. और पी.एच.डी. जैसे उच्चतम शैक्षिक उपाधियां प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उनकी शोध यात्रा में हिंदी और पाली भाषाओं पर उनके गहन अध्ययन ने उन्हें विद्वता के शिखर पर पहुंचा दिया।
कर्म क्षेत्र महाविद्यालय में उल्लेखनीय कार्य
शिक्षा में अपनी उच्चतम योग्यता प्राप्त करने के बाद, 17 जनवरी 1970 को डॉ. तिवारी ने कर्म क्षेत्र महाविद्यालय, इटावा में हिंदी विषय के प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं प्रारंभ कीं। उनके अध्यापन कौशल, नेतृत्व और अनुशासन ने उन्हें जुलाई 1997 में महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर पदोन्नति दिलाई। डॉ. विद्याकांत तिवारी का जीवनकाल शिक्षा, विद्वता और समाजसेवा के अद्वितीय समन्वय का प्रेरणादायक उदाहरण है। उन्होंने अपने ज्ञान, प्रयास और समर्पण से शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह स्मरणीय और अनुकरणीय है।
महाविद्यालय में कई सुधार और नवाचार
डॉ. तिवारी ने इटावा के कर्म क्षेत्र महाविद्यालय में एक शिक्षक के साथ साथ प्रेरक और परिवर्तनकारी प्रशासक के रूप में सेवा की। उनके कार्यकाल के दौरान महाविद्यालय में कई सुधार और नवाचार देखे गए। छात्रों के बीच अनुशासन और एक समानता की भावना स्थापित करने के लिए उन्होंने ड्रेस कोड लागू किया। उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए योग्यता पर आधारित प्रणाली को प्रोत्साहित करने हेतु प्रवेश परीक्षा प्रारंभ की, उन्होंने कई नए विषयों को महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में जोड़ा, जिससे छात्रों को बेहतर करियर विकल्प मिले।
इटावा में शिक्षा और जागरूकता के लिए किये महत्वपूर्ण कार्य
डॉ. विद्याकांत तिवारी का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा, प्रशासन और समाज सेवा के लिए समर्पित किया। उनके जीवन और कार्यों का प्रभाव उनके समकालीनों और आने वाली पीढ़ियों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। शिक्षा और प्रशासन के अलावा, डॉ. तिवारी समाज सेवा में भी सक्रिय रहते है। उन्होंने इटावा में शिक्षा और जागरूकता के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। वे मानते है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझना और निभाना है।
हिंदी और पाली भाषा में योगदान
हिंदी और पाली भाषा में उनकी विद्वता अद्वितीय है। उन्होंने इन भाषाओं के गहन अध्ययन और प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, बल्कि छात्रों में नैतिक और बौद्धिक विकास को प्रोत्साहित करना है। हिंदी और पाली भाषा में डॉ. तिवारी की गहरी पकड़ उन्हें अपने समकालीनों से अलग बनाती है । उन्होंने इन भाषाओं के साहित्यिक और व्यावहारिक पक्ष पर काम किया। उनके शोध कार्य और लेखन ने भाषा के महत्व को समाज के बड़े हिस्से तक पहुंचाया। उन्होंने भारतीय भाषाओं की जड़ों को मजबूत करने और उनके आधुनिक उपयोग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई।
प्रमुख शोध और संग्रहालयों में सेवा
डॉ. तिवारी ने केवल शैक्षिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि शोध और संग्रहालयों के विकास में भी अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने देश के प्रमुख संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं, जिनमें नेशनल लाइब्रेरी, कोलकाता, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, हिंदी साहित्य संग्राहलय, प्रयागराज, प्राची विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, सिटी पैलेस महाराजा जयपुर संग्राहलय, अभय जैन संग्रहालय, हस्तलिपि संग्रहालय, महाराजा बीकानेर राजमहल संग्राहलय, राजमणि पुस्तकालय शामिल हैं। इन संस्थानों में उनके शोध और सलाहकार के रूप में योगदान ने साहित्य, संस्कृति और इतिहास के संरक्षण को नई दिशा दी।
डॉ. विद्याकांत तिवारी: हिन्दी साहित्य में एक मील का पत्थर
डॉ. तिवारी ने पंडित अंबिका दत्त व्यास द्वारा रचित “बिहारी बिहार” का संपादन और प्रकाशन किया, जो हिन्दी साहित्य में सराही गई एक महत्वपूर्ण कृति है। यह पुस्तक तक्षशिला प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई। इसके अलावा, उन्होंने “बिहारी सतसई” की टीका प्रस्तुत की, जो साहित्य समीक्षा और संदर्भ के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस ग्रंथ को विभिन्न विश्वविद्यालयों के साहित्यकारों और प्रोफेसरों ने सराहा। इस कार्य के लिए डॉ. तिवारी ने राजस्थान के राजघरानों, प्राचीन संग्रहालयों, और हस्तलिखित ग्रंथागारों में जाकर दुर्लभ पांडुलिपियों का अध्ययन किया।
पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य
डॉ. तिवारी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया। वह 1977 से 1998 तक उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त पत्रकार के रूप में समाचार भारती न्यूज़ एजेंसी, अमृतप्रभात इलाहाबाद-लखनऊ, जनसत्ता, दैनिक स्वदेश, और भाषा (PTI) के लिए सक्रिय रहे। उनके लेखन में सटीकता और सामाजिक चेतना का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। डॉ. तिवारी ने हिन्दी शोध में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके मार्गदर्शन में 17 शोधकर्ताओं ने पीएचडी और 76 शोधार्थियों ने लघु शोध प्रबंध पूरे किए। उनके मार्गदर्शित शोधकर्ताओं में कई प्रतिष्ठित हस्तियां शामिल हैं, जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और इटावा के पूर्व सांसद डॉ. रामशंकर कठेरिया भी प्रमुख हैं।
सांस्कृतिक और नैतिक जागरूकता का प्रसार
डॉ. तिवारी केवल शैक्षिक और साहित्यिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहे। वे आध्यात्मिक और सामाजिक सेवा में भी अग्रणी है। संकट मोचन धाम, चाँदी, प्रयागराज, सनातन धर्म विद्यापीठ, छिपैटी, इटावा, महर्षि धौम्य आध्यात्मिक शोध संस्थान, इटावा, श्री शंकर दयाल दीक्षित स्मारक संस्थान, राहतपुर, इटावा जैसे संगठनों के माध्यम से उन्होंने समाजसेवा के साथ-साथ समाज को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने का प्रयास किया।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
उनकी नेतृत्व क्षमता, नैतिक मूल्यों पर आधारित दृष्टिकोण और समाज के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाया। शिक्षा को समाज सुधार का माध्यम बनाना और अपने कार्यों से लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना, उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य रहा। डॉ. तिवारी का जीवन हमें यह सिखाता है कि जब एक व्यक्ति ज्ञान, अनुशासन और सेवा के प्रति समर्पित होता है, तो वह समाज के हर वर्ग के उत्थान में योगदान दे सकता है।
युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत
डॉ. विद्याकांत तिवारी का जीवन शिक्षा, विद्वता, प्रशासन, समाजसेवा और आध्यात्मिकता के अनूठे समन्वय का प्रतीक है। उन्होंने न केवल शैक्षिक जगत में अपनी विद्वता से योगदान दिया, बल्कि अपने समाज सेवा के कार्यों से समाज को नई दिशा दी। उनके द्वारा स्थापित संस्थान और उनके नवाचार आज भी उनकी दूरदर्शिता और सेवा भावना के प्रमाण हैं। इटावा केलाखों छात्रों को शिक्षा के साथ नैतिकता का ज्ञान देने वाले डॉ. विद्याकांत तिवारी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।