(प्रेम कुमार शाक्य)
जसवंतनगर/इटावा। विश्व विख्यात मैदानी रामलीला में रविवार को एक अत्यधिक भावुक और प्रेरणादायक प्रसंग प्रस्तुत किया गया, जिसमें श्रीराम ने अपने दिव्य धैर्य, करुणा और न्याय का परिचय दिया। भरत के अयोध्या लौटने के बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट से पंचवटी की ओर बढ़ रहे थे। वन में उनका स्वागत देवताओं और ऋषियों द्वारा हुआ, लेकिन इसी बीच एक अप्रत्याशित घटना ने सबका ध्यान खींचा।
इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण कर सीता माता के चरणों में चोंच मारी, जिससे उनका पैर लहूलुहान हो गया। यह दृश्य देखकर श्रीराम का क्रोध जाग्रत हुआ और उन्होंने एक बाण से जयंत का पीछा किया। जयंत ने बचने के लिए हर देवता की शरण ली, लेकिन कोई भी उसकी सहायता के लिए आगे नहीं आया। आखिरकार नारद मुनि की सलाह पर जयंत श्रीराम की शरण में गया और अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की। श्रीराम ने उसे दंड स्वरूप उसकी एक आंख फोड़ दी। लेकिन अंततः उसे अभयदान देकर उसकी जान बचाई। यह प्रसंग हमें श्रीराम के न्याय और करुणा की अनूठी मिसाल सिखाता है, जो अनुशासन और दया का अद्वितीय संतुलन दर्शाता है।
आगे की यात्रा में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता मुनि अत्रि के आश्रम पहुंचे, जहां मुनि ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। मुनि की पत्नी, देवी अनुसुइया ने सीता को नारी धर्म की शिक्षा दी, जो एक आदर्श गृहिणी और समर्पित पत्नी के रूप में उनकी भूमिका को और अधिक मजबूती देती है। यह प्रसंग दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में नारी धर्म की कितनी गहन और गूढ़ मान्यता है जिसे सीता के माध्यम से साकार किया गया।
राक्षस विराज का वध
रामलीला में एक और रोमांचक घटना उस समय आई, जब राक्षस विराज ने सीता को हरने का प्रयास किया। राम ने अपनी शक्ति और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए सात बाणों से उसका वध किया और सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया। इस घटना ने दर्शकों के हृदय में श्रीराम की वीरता और अपने धर्म के प्रति उनकी निष्ठा की भावना को और प्रगाढ़ किया।