जिले में अर्जुन सिहं भदौरिया ने गांवों के लोगों को संगठित कर सशस्त्र लाल सेना बनाकर क्रान्ित के लिये पूर्ण तैयारी कर ली थी। इन आन्दोलन को देखकर लोगों को सन् 1857 के गदर का स्मरण हो आता था। दोनों मे अन्तर केवल इतना था कि सन् 57 के गदर में सरकार के विरूद्ध फौज ने कदम उठाये थे, किन्तु सन् 42 के आन्दोलन में जनता ने आजादी की आवाज बुलन्द की थी। इस आन्दोलन के समय पूर्वी जिले की भांति इस जिले में अधिक खूनखराबा नहीं हुआ, यद्यपि तोड़फोड़ का काम काफी हुआ केवल औरैया को छोड़कर और कहीं दुखद घटनायें नहीं हुई। जिले के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने बढ़-चढ़कर देश स्वतंत्र कराने में भाग लिया।
548 स्वतंत्रता सेनानियों को भारत सरकार ने दिये ताम्रपत्र
भारत मे व्रिटिश शासन की समाप्ति होने पर इटावा जनपद का लोक जीवन 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। स्वतंत्रता आन्दोलन मे जिले के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वतंत्र भारत में 1947 ई0 में जिले के 548 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ताम्रपत्र दकर भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।