भाजपा नीति मोदी-योगी सरकार में खेती-किसानी सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। किसानों पर बढ़ते कर्ज, आत्महत्याओं, गरीबी और भूमिहीनता में लगातार वृद्धि हो रही है। यह बातें उत्तर प्रदेश किसान सभा के महामंत्री मुकुट सिंह ने यासीनगर क्षेत्रीय कमेटी की बैठक में कहीं। उन्होंने कृषि संकट के मुख्य कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरकारी सब्सिडी में कटौती के चलते कृषि लागत बढ़ी है। वहीं, कृषि उत्पादों के नाम पर कॉरपोरेट कंपनियों को छूट और राहत दी जा रही है, जिससे खाद, बीज, कीटनाशक, कृषि यंत्र, डीजल, बिजली और परिवहन खर्चों में भारी वृद्धि हुई है। लेकिन किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन आयोग के अनुरूप फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम देने और खरीद की गारंटी के वादे से मुंह मोड़ लिया है।
मुकुट सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बिजली का निजीकरण, अडानी स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना और तीनों कृषि कानूनों को नए कृषि बाजार नीति के रूप में लागू करने की साजिश की जा रही है। इससे कृषि का कारपोरेटीकरण होगा और देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसानों पर हावी हो जाएंगी, जिससे किसान सस्ते मजदूरों में तब्दील हो जाएंगे। उन्होंने विपक्षी दलों से अपील की कि वे कृषि संकट के लिए जिम्मेदार नीतियों के खिलाफ खुलकर बोलें और जनता को लामबंद करें।
उन्होंने कहा कि किसान सभा और संयुक्त किसान मोर्चा कृषि संकट के खिलाफ लगातार आंदोलित हैं और इसे देशव्यापी स्तर पर तेज किया जाएगा। इसी क्रम में 15 मई को उत्तर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर व्यापक प्रदर्शन किया जाएगा। इस आंदोलन के जरिए किसानों की समस्याओं के समाधान की मांग की जाएगी। किसान सभा के जिला मंत्री संतोष शाक्य ने बताया कि 15 मई को कचहरी पर होने वाले प्रदर्शन में स्थानीय समस्याओं को भी शामिल किया जाएगा, ताकि किसानों के अलावा आम जनता की दिक्कतें भी प्रशासन के सामने रखी जा सकें।
आशा-रसोइया यूनियन के प्रांतीय नेता अमर सिंह शाक्य ने भी इस बैठक में भाग लिया। उन्होंने स्कीम वर्कर्स के लिए 26 हजार रुपये मासिक वेतन, कर्मचारी का दर्जा और अन्य मांगों को उठाया। उन्होंने कहा कि 15 मई के आंदोलन में किसान सभा के साथ-साथ आशा-रसोइया कर्मचारी यूनियन भी शामिल होगी। बैठक की अध्यक्षता राधेश्याम शाक्य ने की। इसमें मंडल अध्यक्ष डॉ. अजब सिंह, मंत्री अरविंद शाक्य, प्रेमशंकर सविता समेत अन्य नेताओं ने स्थानीय समस्याओं को उठाया और समाधान की मांग की।