प्रारंभिक जीवन
न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त का जन्म 15 जुलाई 1930 इटावा में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारत स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में डूबा हुआ था। उनके परिवार में शिक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों का गहरा प्रभाव था, जिसने उन्हें बचपन से ही अनुशासन और अध्ययनशीलता की ओर प्रेरित किया। उनका पालन-पोषण एक ऐसे वातावरण में हुआ जहां शिक्षा को सबसे बड़ा धन माना जाता था। यह पृष्ठभूमि उनके व्यक्तित्व और उनके जीवन के उद्देश्यों को गहराई से प्रभावित करने वाली साबित हुई।
शिक्षा
श्री गुप्त ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इटावा के थियोसोफिकल इंटर कॉलेज और सनातन धर्म इंटर कॉलेज से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद में अध्ययन किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान वे न केवल विधिक ज्ञान में निपुण हुए, बल्कि साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल एक कुशल अधिवक्ता बनाया, बल्कि एक संवेदनशील और जागरूक नागरिक भी।
विधिक करियर की शुरुआत
29 जनवरी 1951 को वकील के रूप में पंजीकरण के बाद उन्होंने विधिक क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। इटावा में उन्होंने विधि व्यवसाय को अपनाया और अपने ज्ञान और तर्कशक्ति के बल पर जल्दी ही अपनी पहचान बनाई। 4 जनवरी 1962 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नामांकित वकील बनने के बाद उन्होंने फौजदारी और दीवानी दोनों क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता को और अधिक निखारा। उनके तर्क, दृष्टिकोण और न्यायप्रियता ने उन्हें विधिक क्षेत्र में सम्मानित स्थान दिलाया।
जिला सरकारी वकील के रूप में योगदान
10 अगस्त 1964 से 13 जनवरी 1971 तक श्री गुप्त ने इटावा में जिला सरकारी वकील के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अनेक जटिल और संवेदनशील मामलों का निपटारा किया। उनके काम में उनकी निष्ठा और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से दिखाई दी। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कानून के प्रति अपनी गहरी समझ और निष्पक्षता का प्रदर्शन किया, जो उन्हें उनके सहकर्मियों और उच्चाधिकारियों के बीच विशेष रूप से प्रशंसा दिलाने वाला साबित हुआ।
उच्च न्यायालय में सरकारी वकील
18 मार्च 1971 से 6 अगस्त 1973 तक श्री गुप्त ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उप सरकारी वकील के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार के कई महत्वपूर्ण मामलों में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने उच्च न्यायालय में अपने तर्कों और विधिक ज्ञान से न्यायपालिका में अपनी अलग पहचान बनाई। इसके बाद उन्होंने लखनऊ पीठ में सरकारी वकील के रूप में कार्य किया और अपनी प्रतिभा और समर्पण से विधिक प्रणाली में सुधार लाने में योगदान दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नियुक्ति
1 नवंबर 1976 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया। यह पद उनके विधिक ज्ञान और न्यायप्रियता की आधिकारिक मान्यता थी। वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उन्होंने अपने गहन तर्क और विधिक विशेषज्ञता से न्यायपालिका में उच्च मानदंड स्थापित किए। उनके इस पद पर रहते हुए उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क और विचार विधिक प्रणाली के लिए प्रेरणादायक बने।
न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति
17 नवंबर 1977 को श्री गुप्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने न्यायपालिका में पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्याय के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का परिचय दिया। उनके कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा लिए गए निर्णय विधिक दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय के आदर्श उदाहरण बने।
हिन्दी में निर्णय देने की शुरुआत
न्यायमूर्ति गुप्त ने परंपरागत अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में निर्णय देने की शुरुआत की। यह कदम उस समय के लिए क्रांतिकारी था, जब उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी का प्रभुत्व था। उन्होंने यह दिखाया कि निज भाषा में न्याय देना न केवल संभव है, बल्कि यह तर्क और न्याय की प्रभावशीलता को भी बढ़ाता है। उनका यह कदम विधिक क्षेत्र में हिन्दी को स्थापित करने का महत्वपूर्ण प्रयास था।
हिन्दी में 4000 निर्णय
अपने न्यायिक कार्यकाल में उन्होंने लगभग 4000 निर्णय हिन्दी में दिए। यह उनकी विधिक निष्ठा और हिन्दी प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है। उनके इस कार्य ने विधिक क्षेत्र में हिन्दी को एक नई पहचान दिलाई। उनके निर्णयों में विधिक ज्ञान, तार्किकता और न्यायप्रियता का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।
विधिक क्षेत्र में हिन्दी का महत्व
न्यायमूर्ति गुप्त का मानना था कि विधि क्षेत्र में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का सहज और स्वाभाविक प्रयोग होना चाहिए। उन्होंने जटिल कानूनी शब्दावली को सरल और जनसुलभ बनाने के लिए विशेष प्रयास किए। उनका यह दृष्टिकोण विधिक क्षेत्र में भाषा की सुलभता और समावेशिता को बढ़ाने वाला था।
स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा
उनके गुरुओं, श्री शिशुपाल सिंह भदौरिया और श्री वल्लभ जी ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेरित किया। यह प्रेरणा उनके जीवन के हर पहलू में दिखाई दी। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन
सेवानिवृत्ति के बाद भी न्यायमूर्ति गुप्त ने हिन्दी के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने ‘इटावा हिन्दी सेवा निधि’ की स्थापना की, जो हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है।
हिन्दी सेवा में योगदान
उन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए न केवल धन बल्कि समय और श्रम भी लगाया। उनकी यह सेवा हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। न्यायमूर्ति गुप्त का साहित्य और संस्कृति से गहरा लगाव था। वे हिन्दी साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित रहे।
पुरस्कार और सम्मान
उनके योगदान के लिए उन्हें ‘हिन्दी गौरव’, ‘साहित्य वाचस्पति’, ‘महामना मदन मोहन मालवीय सम्मान’, ‘तुलसी सम्मान’ जैसे अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनका लेखन और विधिक दृष्टिकोण विधि क्षेत्र में मील का पत्थर है। उन्होंने विधि और न्याय के क्षेत्र में हिन्दी को एक नई पहचान दिलाई।
निज भाषा उन्नति का मंत्र
उनका जीवन ‘निज भाषा उन्नति अहै’ के आदर्श को समर्पित रहा। उन्होंने इसे अपने कार्यों और विचारों से साकार किया। वे न केवल एक न्यायाधीश थे, बल्कि एक विचारक, साहित्यकार, और संस्कृति प्रेमी भी थे। उनके व्यक्तित्व में गहराई और ओजस्विता का अद्भुत मेल था।
प्रेरणा का स्रोत
उनका जीवन और कार्य आज भी हिन्दी और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त की स्मृति और विरासत हिन्दी और भारतीय विधि क्षेत्र में हमेशा जीवित रहेगी। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रहेगा।
न्यायपालिका में हिन्दी का योगदान
न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त ने न्यायपालिका में हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जो प्रयास किए, वे ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। जब उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी का प्रभुत्व था, उन्होंने हिन्दी में निर्णय लिखकर यह प्रमाणित किया कि न्याय केवल भाषा पर निर्भर नहीं होता, बल्कि विचार और तर्क पर आधारित होता है। उनके इस कदम ने हिन्दी भाषा को न्यायपालिका में सम्मानजनक स्थान दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया। उनके निर्णयों में भाषा की सरलता और स्पष्टता ने जनता को न्याय प्रणाली के करीब लाने में मदद की। यह उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण और न्यायप्रियता का प्रमाण है।
समाज और विधिक शिक्षा में योगदान
न्यायमूर्ति गुप्त ने विधिक शिक्षा और समाज के बीच की खाई को पाटने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया। वे मानते थे कि विधि का ज्ञान केवल वकीलों और न्यायाधीशों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे आम जनता तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने हिन्दी में सरल और प्रभावी निर्णय लिखकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा लिखे गए निर्णय विधिक छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए आज भी अध्ययन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उनकी विधिक दृष्टि ने न केवल विधिक शिक्षा को समृद्ध किया, बल्कि समाज में न्याय की अवधारणा को भी मजबूत किया।
साहित्यिक योगदान और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
न्यायमूर्ति गुप्त साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरे समर्पित थे। उनके व्यक्तित्व में भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ें और आधुनिक दृष्टिकोण का अद्भुत समन्वय था। उन्होंने हिन्दी साहित्य को विधिक दृष्टिकोण से जोड़ा और यह दिखाया कि विधि और साहित्य एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। उनकी लेखनी में साहित्यिक सौंदर्य और विधिक तर्क का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है। उनकी यह विशेषता उन्हें अन्य न्यायविदों से अलग और विशिष्ट बनाती है।
प्रेरणादायक व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति गुप्त का जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने कार्यक्षेत्र में अपनी मातृभाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं। वे अपने जीवन के हर पहलू में एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। चाहे वह विधिक क्षेत्र में उनकी उपलब्धियां हों, हिन्दी के प्रति उनका समर्पण हो, या समाज के प्रति उनकी सेवाएं, हर क्षेत्र में उन्होंने उच्च मानदंड स्थापित किए। उनका जीवन संदेश देता है कि भाषा, संस्कृति और न्याय के प्रति समर्पण से समाज को सकारात्मक दिशा में बदला जा सकता है।
इटावा हिन्दी सेवा निधि की शुरुआत
न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त द्वारा स्थापित इटावा हिन्दी सेवा निधि का उद्देश्य हिन्दी भाषा को समृद्ध करना और इसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाना है। यह संस्था न केवल हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करती है, बल्कि साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान देती है। इस निधि के माध्यम से न्यायमूर्ति गुप्त ने हिन्दी साहित्य के मनीषियों को प्रोत्साहित करने और उनके योगदान को सम्मानित करने की परंपरा शुरू की। यह संस्था उनकी हिन्दी सेवा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
सारस्वत सम्मान समारोह: एक सांस्कृतिक महोत्सव
इटावा हिन्दी सेवा निधि द्वारा हार वर्ष आयोजित सारस्वत सम्मान समारोह हिन्दी साहित्य और कला के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित आयोजन बन चुका है। इस समारोह में देश-विदेश के प्रसिद्ध कवि, लेखक, और साहित्यकार अपनी रचनाओं का पाठ करते हैं, जिससे साहित्य प्रेमियों को समृद्ध अनुभव प्राप्त होता है। यह आयोजन न केवल साहित्यिक योगदानों को सम्मानित करता है, बल्कि हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम भी है। इस समारोह के माध्यम से युवा पीढ़ी को हिन्दी के प्रति प्रेरित किया जाता है।
इटावा हिन्दी सेवा निधि का नेतृत्व और प्रबंधन
इटावा हिन्दी सेवा निधि का वर्तमान में संचालन न्यायमूर्ति गुप्त के परिवार और उनके करीबी सहयोगियों द्वारा किया जाता है। इस संस्था के न्यासी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार गुप्त हैं, जो न्यायमूर्ति गुप्त के विचारों और उद्देश्यों को आगे बढ़ा रहे हैं। संयोजक राज कुमार गुप्त भी इस संस्था के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। उनके नेतृत्व में संस्था ने हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की हैं।
हिन्दी को वैश्विक मंच पर ले जाने का प्रयास
इटावा हिन्दी सेवा निधि का एक प्रमुख उद्देश्य हिन्दी को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाना है। इसके लिए संस्था विभिन्न कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और साहित्यिक आयोजनों का आयोजन करती है। यह संस्था हिन्दी लेखकों, कवियों और कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करने के लिए प्रयासरत है। न्यायमूर्ति गुप्त का यह सपना था कि हिन्दी भाषा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सम्मानित हो, और उनकी इस सोच को यह संस्था निरंतर साकार कर रही है।
न्यायमूर्ति गुप्त की विरासत का संरक्षण
इटावा हिन्दी सेवा निधि न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त की विरासत को संजोने और आगे बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम है। यह संस्था उनके विचारों, उनके आदर्शों और उनके हिन्दी प्रेम को जीवित रखती है। उनके द्वारा स्थापित यह निधि न केवल हिन्दी भाषा के लिए कार्य कर रही है, बल्कि समाज में साहित्य और संस्कृति के महत्व को भी उजागर कर रही है। यह कहना उचित होगा कि न्यायमूर्ति गुप्त का योगदान और उनकी विरासत इस संस्था के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचती रहेगी।