जसवंतनगर (इटावा)- इस वर्ष आलू की बंपर पैदावार होने और भावों के नीचे चले जाने से किसानों ने कोल्ड स्टोरेजों में आलू भंडारण के लिए दौड़ लगानी शुरू कर दी है। इस बार आलू की जिस तरह से भारी पैदावार है, उससे उम्मीद की जा रही है कि यहां क्षेत्र के सभी कोल्ड स्टोरेज फुल हो जाएंगे। इसके अलावा भी आलू खेतों में बाकी शेष रहेगा।
फरवरी महीने के प्रथम पखवाड़े में तेज बरसात होने और खेतों में पानी भर जाने से आलू की खुदाई इस बार 15 से 20 दिन लेट हो गई है। ज्यादातर खेतों में फरवरी के आखिरी सप्ताह में ही खुदाई लग सकी है। इस बीच आलू का भाव 10रुपए किलो से गिरकर 6-7 रुपए किलो तक रह गया है। यानि जनवरी की शुरुआत में आलू का जो 50 किलो का पैकेट, 700-800 रुपए का बिक रहा था, वह अब गिरकर 350 सौ और 400 के भाव पर आ गया है।
जसवंतनगर क्षेत्र में सैफई इलाके को मिलाकर कुल 30 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज है और इनमें करीब 80 से 90 लाख पैकेट आलू रखा जा सकता है।
मौसम ठीक रहने और किसी प्रकार की बीमारी न लगने के कारण पिछले वर्ष की तुलना में क्षेत्र में आलू का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 15 से 20 परसेंट ज्यादा होने की उम्मीद की जा रही है।
पिछले सीजन में सभी कोल्ड स्टोरेज (इक्का-दुक्का को छोड़कर) फुल हो गये थे, इस बार ज्यादा उत्पादन की संभावना ने न केवल कोल्ड स्टोरों के फुल होने की संभावना जताई गई है, बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि सरकारी आलू की खरीद का कोई प्रबंध न होने से आलू और भी सस्ता बिकेगा। भंडारण क्षमता फुल हो जाने पर आलू खेतों में पड़ा रहकर सड़ भी सकता है।
आलू उत्पादक एक किसान हरी सिंह शाक्य ने बताया है कि उसके खेतों में, जहां पिछले वर्ष 3797 वैरायटी का आलू एक बीघा में 50 पैकेट निकला था, इस बार 60 पैकेटआराम से निकल रहे हैं। हाइब्रिड वैरायटी आलू की खेती करने वाले किसानो के खेतों में 90 पैकेट तक आलू निकल रहे हैं। किसानों ने बताया कि अच्छी पैदावार का कारण इस बार आलू के उत्पादन योग्य मौसम रहना है।
बीच में बरसात होने से आलू की खुदाई लेट हुई है,जो खुदाई मार्च के पहले सप्ताह में खत्म हो जाती थी,वह इस बार मार्च के अंतऔर मिड अप्रैल तक चलने वाली है।
कोल्ड स्टोरो में आलू भंडारण ने अभी से तेजी पकड़ ली है।यहां के कई कोल्ड स्टोर्स में तो आलू भरे ट्रैक्टरों की अभी से लंबी लाइने देखी जाने लगी है। भारी पैदावार के चलते इस बार कोल्ड स्टोर मालिक किसानों के खेतों पर दौड़ नहीं लगा रहे हैं और न ही किसानों को बारदाना, लोन और भाड़ा देने को तैयार है, क्योंकि वह जानते हैं कि भाव सस्ता होने से किसान के पास आलू भंडारण के अलावा का कोई विकल्प शेष नहीं बचा है।