इस बीच इटावा के सैनिकों ने ह्यूम और उनके परिवार को मार डालने की योजना बनाई। योजना की भनक अंग्रेजों को लग गयी। इस समय इटावा के निकट स्िथत बढ़पुरा एक सुरक्षित स्थान था। 17 जून 1857 को ह्यूम एक देहाती महिला का वेश बनाकर गुप्त रूप से इटावा से निकलकर बढ़पुरा पहुंच गये। सात दिनों तक ह्यूम बढ़पुरा में छिपे रहे।
25 जून 1857 को ग्वालियर से अंग्रेजों की रेजीमेंट इटावा आ गयी तथा यहां पर अंग्रेजों का पुन: अधिकार हो गया। लेकिन अभी यह अधिकार नाम मात्र का ही था। इटावा में क्रान्ित की ज्वाला अभी ठण्डी नहीं थी।
अगस्त के अन्त में ह्यूम ने जो अपनी आख्या अपनी भावी शासन नीति के सम्बन्ध में लिखकर सरकार को भेजी वह बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसके अनुसार-
‘राजपूतों और अन्य युद्ध प्रिय जातियों के लोगों को उचित संसाधनों द्वारा सुखी बनाओं । उन्हें ग्रामीण साहूकारों और अदालतों के कष्टों को दूर रखों। वे लोग उस सरकार की ओर से लडे़गें जिसने उन्हें पनपाया है। गूजर, अहीर तथा अन्य जाति के लोगों को कृषि के द्वारा उन्नति करने का अवसर दो। फौजदारी की अदालतें कम खंर्चीली बनाओ तो ये लोग सरकार के साथ रहेंगे। बनियां, कायस्थ, महाजन तथा अन्य ऐसे लोगों पर कर लगाओ जो कलम के द्वारा मालामाल होकर इन लोगों को उनके पुस्तैनी घर और खेती से उन्हें वंचित कर देते हैं और स्वंय इतने भीरू होते है कि अपनी जान माल की रक्षा स्वयं न कर पाते है और न सरकार की सहायता करते है।