कतिपय विद्वानों के मतानुसार आगरा जिला के बटेश्वर से लेकर भरेह तक के मार्ग को इष्टपथ के नाम से जाना जाता है। इष्टिकापुरी के नामकरण के पीछे इस सम्पूर्ण मार्ग पर इष्टदेव भगवान शिव के मंदिरों का बड़ी संख्या में स्िथत होना है। इष्ट शब्द से इस स्थान का नाम प्रथमत: इष्टिकापुरी का उल्लेख ‘’भविष्य पुराण’’ में मिलता है। कतिपय विद्वानों के मतानुसार इटावा नामकरण की उत्पत्ति राजपूत काल में हुई । प्रसिद्ध चौहान वंश के राजा सुमेर शाह द्वारा सुमना नदी के किनारे जब किले का निर्माण कराया जा रहा था तब नींव खोदते समय मजदूरों को सोने की ईंट प्राप्त होने पर मजदूरों के मुख से ‘’ईंट आया’’ शब्द निकला। इसी ध्वनि के आधार पर इस स्थान का नाम ‘’ईट आया’’ पड़ा । जो कालांतर में ‘’ इटावा’’ उच्चारित हुआ। विद्वानों का यह मत भी है कि संस्कृत में ईंटों को इष्टिका कहते हैं। इस नगर में सैकड़ों ईंट भट्टे हैं। पूर्व में ईंट आवा में पकाई जाती थी। इसलिए तब इटावा नामकरण हुआ होगा जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर इटावा नाम से पहचाना गया ।
इटावा जिला मुख्यालय से बीस किलोमीटर दूर स्िथत सैफई नामक गॉव से तांवे के बने कुछ औजार मिले हैं, जो लखनऊ संग्रहालय में हैं। पुरावेत्ता डॉ0 धर्म पाल अग्रवाल एवं एच0डी0 साकलिया ने इन ताम्र अवशेषों को सैंधवकाल के दायरे में रखा है। चूंकि बैदिक काल के तॉबे के बर्तन एटा के अतरंजी खेड़ा से भी मिला चुके है। अत: यह पर्याप्त विश्वसनीयता लगता है कि इटावा-एटा क्षेत्र ताम्र शोधन के लिए उपर्युक्त रहा होगा ओर यहां पर यह तकनीकि विकसित हुई होगी। चूंकि वैदिक काल में ताम्र अवशेषों की संख्या नगण्य रूप में ही प्राप्त हुई है। अत: प्राचीनता की दृष्टि से यह तथ्य बैदिक काल की ओर ही जाते है। इटावा की विशेषता यह है कि यहां पर पूर्व वैदिक, वैदिक एंव आगे के काल खंडों के क्रमिक विकास की अमूल्य धरोहरें विद्यमान है।
शतपथ ब्राहम्ण में उल्लेख है कि पांचाल एक शासक शोण सात्रवाह ने परिचक्रा (चक्रनगर) में एक अश्मेघ यज्ञ किया। इसी ग्रन्थ में उल्लेख है कि शोण सात्रवाह ने परिचक्रा में किए यज्ञ में 6660 वक्खतर बंद (लौह कवच) योद्धाओं को यज्ञ रक्षा के लिए नियुक्त किया गया जो इस काल में विकसित हो चुकी थी। शतपथ ब्राहम्ण के इस कथन के प्रमाण के तौर पर चक्रनगर में मुख्य रूप से एक पके हुए लोहे का टुकड़ा प्राप्त हुआ है। पुरात्ववेत्ता डा0 करूणा शंकर शुल्क ने इस लोहे के टुकड़े को उत्तर वैदिक काल (1500 वी0सी0) का ठहराया है।