Saturday, November 16, 2024

गुरु नानक देव जी और भगवान् बिरसा मुंडा को शत शत नमन

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लेख – डॉ विद्या कान्त तिवारी

आज भारत के दो महापुरुषों की जयन्ती है। गुरु नानक देव जी और भगवान् बिरसा मुंडा की। भगवान् बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों द्वारा जनजातीय समाज के जीवन, समाज और संस्कृति के विरुद्ध जो आपत्तिजनक व्यवहार किया और जनजातियों को उनके, जमीन और जीवन से विरत करने का घृणित कार्य किया, बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की चुनौती को स्वीकार करते इतना बड़ा संघर्ष खड़ा कर दिया कि अंग्रेज हुकूमत घबरा गयी, उन्हें जिन्दगी के आखिरी दमतक जेल जीवन की यातनाएं झेलनी पड़ीं।

बिरसा मुंडा का संघर्ष इतना प्रभावशाली रहा कि ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों का धर्मांतरण कुछ समय के लिए रुक गया। मिशनरियों की हिम्मत जवाब देने लगी। वनवासी आदिवासी जाग्रत हुए और बिरसा मुंडा की साधना और बलिदान का प्रभाव आज आप देख सकते हैं कि वनवासी आदिवासी समाज की बेटी भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद महामहिम राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति भवन से भारत सहित संपूर्ण विश्व को अपने सामाजिक सामर्थ्य का परिचय दे रही है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भगवान् बिरसा मुंडा के संघर्ष त्याग और तपस्या के वरदान स्वरूप भारत का गौरव बढ़ा रही हैं।
जनजातियों का संघर्ष विदेशी विजातीय शक्तियों से निरंतर चल रहा है। आज भी विदेशी विचारधारा के संवाहक क्रिश्चियन मिशनरी, बंगलादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम तथा कम्युनिस्ट पूर्वांचल के जनजातियों के बीच अपने षड्यंत्र के साथ सक्रिय हैं लेकिन आज का जाग्रत भारत और अमृत महोत्सव के माध्यम से राष्ट्र जागरण कर रही भारत सरकार और सचेत जनजातियाँ विदेशियों एवं भारत द्रोही ताकतों को वहाँ से भगा कर ही दम लेंगी।

महान संत, सामाजिक समरसता के महान ज्योतिपुंज गुरु नानक देव ने आज से साढ़े पांच सौ वर्ष पूर्व के भारत में मानवीय एकता का जो शंखनाद नाद किया उससे समाज में नवजागरण का नया भाव उत्पन्न हुआ। एक जोत से जन्म लेने वाले छोटे बड़े कैसे हो सकते हैं। गुरु नानक के समय जाति पांति, छुआछूत, ऊंच नीच का भाव चरम सीमा पर था। इसके लिए बिना भेदभाव के सहभोज का आयोजन लंगर और पंगत के रूप किया गया जहाँ गरीब, राजा, शूद्र, ब्राह्मण एक साथ भोजन करते थे।

आदि शंकराचार्य के बाद संभवतः गुरुनानक देव पहले संत थे जिन्होंने भारत सहित अड़ोस पड़ोस के देशों, इस्लामिक देशों की लगभग 28000 मील की यात्रा की। वे जिन शिष्यों को दीक्षा देते थे उनसे खुद भी दीक्षा लेते थे जिससे कोई अपने को छोटा बड़ा न समझे। गुरु नानक से गुरु गोबिंद सिंह की यशस्वी गुरु परंपरा ने भारत और हिन्दुत्व की रक्षा के लिए जो त्याग और बलिदान किए वह अविस्मरणीय है। आज भी सिख समाज अपनी गुरु परंपरा से जुड़ कर भारत के सामाजिक, राजनीतिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र के समर्थ प्रतिनिधि के रूप में भारत का गौरव देश- विदेश में स्थापित किये हुए है।

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