भरथना,इटावा। इटावा जनपद की तहसील भरथना के ग्राम रमायन में करीब पांच सैकड़ा से भी अधिक वर्ष पुराना प्राचीन शिव मन्दिर आज भी इटावा की धरोहर के रूप में विख्यात है।
इस सृष्टि के आदि देव, देवों के देव महादेव को शिवशंकर, भोलेनाथ और भूतनाथ आदि अनेक नामों से जिन्हें पुकारा जाता है। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के इस प्राचीन रमायन मन्दिर शिवालाय पर भक्तों का जनसैलाब देखने को मिलता है।
ऐसी ही श्रद्धालुओं की भारी भीड भरथना क्षेत्र के ग्राम रमायन स्थित इस प्राचीन शिव मन्दिर में देखने को मिलती है। उक्त मन्दिर को ‘‘महामंशापूर्ण श्री गंगाधर विश्वनाथ शिव मन्दिर रमायन‘‘ के नाम से भी जाना जाता है। भरथना नगर से करीब तीन किमी०की दूरी पर पूर्वाेत्तर दिशा में नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर झील के किनारे बसे गांव में यह प्राचीन शिव मन्दिर स्थित है। यह भव्य और विशाल मन्दिर अपने वास्तुशिल्प की दृष्टि में जनपद में ही नहीं अन्य जिलों में भी अपना विशेष महत्व रखता है। हर सोमवार को यहाँ भारी संख्या में भक्तजन पूजन अर्चन करने आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धाभाव से भोले से जो कुछ माँगता है, भगवान भोलेनाथ उसके सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करते हैं। मन्दिर की ओर से महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। श्रीमद् भागवत कथा, भजन कीर्तन, विशाल भण्डारा आदि अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का क्रम चलता रहता है। मन्दिर के निर्माण के सम्बन्ध में गांव के बुजुर्गों ने बताया कि इस भव्य मन्दिर का निर्माण यहाँ के पूर्व जमींदार रमेश चन्द्र पाठक के पूर्वजों ने लगभग 500 वर्ष से भी अधिक पहले कराया था। ब्रिटिश काल में इस मन्दिर का वैभव पूर्ण यौवन पर था। मन्दिर चारों ओर सुव्यवस्थित लगभग 100 बीघा में स्थित था। ब्रिटिश काल के बाद शनै-शनै इस मन्दिर का वैभव उजडता चला गया। यह शिव मन्दिर कई वास्तुशिल्प शैलियों का संगम है। इसके महराबदार दरवाजे, कलात्मक खम्भे, बरामदे को अद्भुत सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
मन्दिर के सामने पूर्व दिशा की ओर एक विशाल तालाब भी है। जो मन्दिर के सौन्दर्य को दोगुना कर देता है। दक्षिण भारतीय शैली में इसका मुख्य केन्द्रीय बुर्ज विशाल शंकु के आकार का है। जिसके शिखर पर स्वर्ण पत्र जडित कई कलश लगे हैं। जिसके ऊपर त्रिशूल लगा है। इन कलशों की ऊँचाई लगभग 80 फीट है। अपने निर्माणकाल से अब तक इसकी चमक फीकी नहीं पडी है।
इस गांव ने आज भी प्राचीन शिव मन्दिर और विशाल झील के कारण अपना आध्यात्मिक और नैसर्गिक महत्व नहीं खोया है। मन्दिर के समीप दक्षिण दिशा में एक छोटा शिव मन्दिर है, जो करीब 500 वर्ष पुराना मुस्लिम काल का निर्मित है। यहाँ भी भक्तों का आवागमन रहता है। आज से करीब 25 वर्ष पूर्व तत्कालीन ग्राम प्रधान ने इस जीर्ण शीर्ण मन्दिर का जीर्णोद्धार करना शुरू किया था और धीरे-धीरे लोगों की आस्था का केन्द्र बने इस मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए अन्य समाजसेवी भक्तगणों ने भी अपना सहयोग प्रदान करना शुरू किया। मन्दिर की जो बुर्जें गिराऊ थीं, उनकी मरम्मत करायी, खम्भों, दरवाजों का जीर्णोद्धार कराया और मन्दिर के सामने तालाब का पुनर्निर्माण कर सौन्दर्यीकरण किया। इसके पश्चात मध्य में कई प्रधान चुने गये। जिन्होंने अपने-अपने स्तर से मन्दिर को भव्यता प्रदान करने के लिए सहयोग किया। लेकिन पिछले करीब 5 सालों से मन्दिर का पुनरूद्धार और सौन्दर्यीकरण का कार्य नगर के कुछ धर्मशील सहयोगियों ने मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाना शुरू कर दिया। जो अब तक जारी है। इसमें गांव वालों का भी पूरा सहयोग रहा। वहीं मन्दिर के पुजारी राजाराम शाक्य ने बताया कि वह विगत करीब 50 वर्षों से मन्दिर में रहकर भगवान भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मन्दिर का निर्माण औसतन मुगल शासन के पहले का बना हुआ है। पुराने लोगों के अनुसार मुगल शासन से पहले सेंगर नामक एक ब्राहमण हुआ करते थे। उनके कार्यकाल में निर्माण कराया गया था। जिनकी एक पुत्री थी, जिसमें पुत्री की शादी पाठक परिवार में की गई थी। तब से उन लोगों ने ही कुछ दिन मन्दिर की देखरेख की।