Saturday, September 21, 2024
Homeहमारा इटावाजौनपुर राज्य के अधीन रहा इटावा

जौनपुर राज्य के अधीन रहा इटावा

इस अवसर पर इटावा  के राजपूतों को वश में करने के लि‍ये आक्रमण कि‍या गया। आगे चलकर दि‍ल्‍ली के सुल्‍तानों  की शक्‍ि‍त लगातार क्षीण होती चली गयी और जौनपुर एक स्‍वतंत्र राज्‍य बन गया। इटावा भी जौनपुर राज्‍य के अधीन अंशत: आ गया। वस्‍तुत: इटावा  इस समय दि‍ल्‍ली  और जौनपुर दोनों ही राज्‍यों  के मध्‍य एक ‘’वफर स्‍टेट’ जैसा था और आक्रमणों  का शि‍कार होता रहा ।

इटावा का मध्‍यकालीन इति‍हास आक्रमणों की श्रंखला का इति‍हास है। प्रशासन का इटावा  से रास्‍ता केवल कर संग्रह तक ही सीमि‍त रहता था। राजस्‍व अगर बसूल नहीं  हो पाता तो आक्रमण करने के लि‍ये दि‍ल्‍ली से नि‍कट भी था। अत: तत्‍काल इटावा के राजपूतों का मद चूर करने के लि‍ये दि‍ल्‍ली की फौजें आ जाती थीं।

दि‍ल्‍ली सल्‍तनत के पतन के साथ ही क्षेत्रीय स्‍वतंत्र राज्‍य स्‍थापि‍त हो गया। जौनपुर इनमें सर्वाधि‍क प्रभावशाली था। इटावा जौनपुर के अधीन हो गया। एक लम्‍बे समय तक इटावा दि‍ल्‍ली के आक्रमणों से मुक्‍त हो गया। सैयद वंश की शि‍थि‍लता के कारण पहले से ही राज्‍य करते आ रहे लोदी (अफगान) वंश को एक फि‍र सि‍र उठाने  का अवसर मि‍ल गया। 1437 ई0 के बाद हसन खां लोदी ने आगरा तथा इटावा पर अधि‍कार कर लि‍या। 1451 में दि‍ल्‍ली पर भी बहलोल लोदी का अधि‍कार हो गया। इटावा से जौनपुर के बीच के क्षेत्रों  पर अधि‍कार  के लि‍ये  जौनपुर तथा दि‍ल्‍ली दोनों  में संघर्ष की स्‍ि‍थति‍ थी। इटावा में  ही दोनों फौजों  का सामना हुआ। इटावा के राव प्रताप सि‍हं ने दोनों दलों में संधि‍  करा दी तथा इटावा जौनपुर  के अधीन बना रहा। जौनपुरी शासकों की ओर से 1486 ई0 के आसपास  जूनाखां इटावा  का गर्वनर था। उसका केन्‍द्र शमसाबाद था। जूनाखां ने इटावा  के एक बौद्ध मंदि‍र को नष्‍ट कि‍या तथा राजस्‍व संग्रह के लि‍ये  इकनौर पर  आक्रमण कि‍या।

इस अवसर पर इटावा  के राजपूतों को वश में करने के लि‍ये आक्रमण कि‍या गया। आगे चलकर दि‍ल्‍ली के सुल्‍तानों  की शक्‍ि‍त लगातार क्षीण होती चली गयी और जौनपुर एक स्‍वतंत्र राज्‍य बन गया। इटावा भी जौनपुर राज्‍य के अधीन अंशत: आ गया। वस्‍तुत: इटावा  इस समय दि‍ल्‍ली  और जौनपुर दोनों ही राज्‍यों  के मध्‍य एक ‘’वफर स्‍टेट’ जैसा था और आक्रमणों  का शि‍कार होता रहा ।

इटावा का मध्‍यकालीन इति‍हास आक्रमणों की श्रंखला का इति‍हास है। प्रशासन का इटावा  से रास्‍ता केवल कर संग्रह तक ही सीमि‍त रहता था। राजस्‍व अगर बसूल नहीं  हो पाता तो आक्रमण करने के लि‍ये दि‍ल्‍ली से नि‍कट भी था। अत: तत्‍काल इटावा के राजपूतों का मद चूर करने के लि‍ये दि‍ल्‍ली की फौजें आ जाती थीं।

दि‍ल्‍ली सल्‍तनत के पतन के साथ ही क्षेत्रीय स्‍वतंत्र राज्‍य स्‍थापि‍त हो गया। जौनपुर इनमें सर्वाधि‍क प्रभावशाली था। इटावा जौनपुर के अधीन हो गया। एक लम्‍बे समय तक इटावा दि‍ल्‍ली के आक्रमणों से मुक्‍त हो गया। सैयद वंश की शि‍थि‍लता के कारण पहले से ही राज्‍य करते आ रहे लोदी (अफगान) वंश को एक फि‍र सि‍र उठाने  का अवसर मि‍ल गया। 1437 ई0 के बाद हसन खां लोदी ने आगरा तथा इटावा पर अधि‍कार कर लि‍या। 1451 में दि‍ल्‍ली पर भी बहलोल लोदी का अधि‍कार हो गया। इटावा से जौनपुर के बीच के क्षेत्रों  पर अधि‍कार  के लि‍ये  जौनपुर तथा दि‍ल्‍ली दोनों  में संघर्ष की स्‍ि‍थति‍ थी। इटावा में  ही दोनों फौजों  का सामना हुआ। इटावा के राव प्रताप सि‍हं ने दोनों दलों में संधि‍  करा दी तथा इटावा जौनपुर  के अधीन बना रहा। जौनपुरी शासकों की ओर से 1486 ई0 के आसपास  जूनाखां इटावा  का गर्वनर था। उसका केन्‍द्र शमसाबाद था। जूनाखां ने इटावा  के एक बौद्ध मंदि‍र को नष्‍ट कि‍या तथा राजस्‍व संग्रह के लि‍ये  इकनौर पर  आक्रमण कि‍या।

इटावा का पोल

spot_img
spot_img
हमारा इटावा
प्रशासनिक अधिकारी
चिकित्सक

Advertisements

spot_img

आज की खबरें