भरथना (रिपोर्ट- तनुज श्रीवास्तव, 9720063658)- आधुनिकता के इस युग में हम जितने विकसित होते चले जा रहे हैं, वहीं हमारी संस्कृति व परम्पराओं का दायरा सिमटकर संकुचित होता जा रहा है। हमारी लोक परम्पराओं का धीरे-धीरे दूर होना एक चिन्तनीय विषय है। प्रमुख हिन्दू त्यौहारों में समाहित श्रावण मास में पडने वाला ‘‘हरियाली तीज‘‘ पर्व आस्था, संस्कृति व लोक परम्पराओं का प्रतीक है।
शालिनी यादव निवासी कृष्णा नगर का कहना है कि हरियाली तीज एक प्रमुख हिन्दू त्यौहार है, जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह प्राकृतिक सौन्दर्य को खूबसूरती से देखने, आनन्द और उमंग अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करता है। इस दिन महिलायें व्रत रखती है और हरे रंग के परिधान व श्रृंगार धारण करती है। साथ ही अपने पति की दीर्घायु और सुख-शान्ति की कामना के लिए हर्षोल्लास के साथ भगवान भोलेनाथ-पार्वती माता का पूजन अर्चन करती हैं।
संध्या श्रीवास्तव निवासी न0 छोला का कहना है कि जहाँ समाज का प्रत्येक व्यक्ति तीज-त्यौहारों व अन्य खुशियों के मौके पर प्राकृतिक चीजों के साथ साझा नहीं करता, बल्कि बन्द कमरों के वातानुकूलित वातावरण में आधुनिक संगीत के साथ नाच कूद करके पकवान का स्वाद रखने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है। वहीं मोबाइल के बढते प्रकोप ने सभ्यता-संस्कृति पर आधारित ऐसे कई त्यौहारों को अस्तित्वहीन करके विभिन्न ‘‘डे‘‘ का रूप ले लिया है, जिन्हें मनाने का हमें आधार ही नहीं पता, लेकिन हम आधुनिकता की धारा मेें बहे चले जा रहे हैं।
नीलम (सहायक अध्यापक) निवासी बृजराज नगर का कहना है कि आज हम विज्ञान की आधुनिकता के साथ तेजी से आगे बढ रहे हैं। लेकिन लोक परम्परायें भूलते जा रहे हैं। श्रावण मास में झूले, लोकगीत सावन की प्रमुख पहचान थे। आस्था, उमंग, सौन्दर्य का यह त्यौहार भारतीय संस्कृति में बहुत प्रचलित व लोकप्रिय है। आधुनिक युग में जहाँ एक और एकान्तवादी सोच उत्पन्न हुई, संचार की इस आधुनिकता में लोकगीतोें का महत्व बिल्कुल शून्य हो गया।
सरिता निवासी न0 राजा का कहना है कि आज आधुनिकता की चकाचौंध में हमारी यह संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। अब तो लोक गीतों का स्थान पाश्चात्य संगीत ने ले लिया है। सावन में कम होते झूलों का सबसे बडा कारण पार्कों, खुले मैदानों की कमीं के साथ वृक्षों का कटान भी है। अनवरत चल रहे पेडों के कटान ने पहले ही हरियाली तीज को फीका कर दिया है।