इटावा। 1888 में तत्कालीन जिलाधिकारी एच जे अलेक्जेंडर द्वारा पक्का तालाब पर एक छोटे के मेले के रूप में नुमाइश की शुरुआत कराई गई। 1892 में यह बंद हो गई किंतु 1910 और 11 में यह नुमाइश पुनः अपने वर्तमान स्थान पर लगना शुरू हुई जो निर्वाध और निरंतर प्रतिवर्ष लग रही है। जहां स्थानीय एवम् बाहर से आने वाले लोगों को मनोरंजन तथा तकनीकी, शैक्षिक तथा उद्योग जगत से संबंधित तमाम नवीन जानकारियां प्राप्त होती रहीं।
किंतु वर्तमान में इटावा जिला प्रदर्शनी कार्यकारिणी सदस्य एडवोकेट सुरेश त्रिपाठी द्वारा इटावा जिला प्रदर्शनी से आरटीआई जन सूचना हेतु गुहार लगाई गई कि हमें आय तथा व्यय संबंधी मुद्दों विवरण/लेखा प्रदान किया जाए। किंतु प्रदर्शनी संस्था द्वारा यह कहकर सूचना प्रदान नहीं की गई की इटावा जिला प्रदर्शनी सरकारी संस्था नहीं है ,किंतु 2023 की आय , व्यय रिपोर्ट दिखाने की सहमति बनी , जिसमें तत्कालीन मशहूर हो गई प्रदर्शनी मेगा नाइट पर एक करोड़ नौ लाख रुपया व्यय दिखाया तथा एक गायक का इटावा से दिल्ली तक भेजने का टैक्सी भाड़ा 70,000 सत्तर हजार रुपया विवरण में उपलब्ध हुआ। इटावा के मशहूर पत्रकार सोहम यादव ने अपने शहरनामे कॉलम में जगह देते हुए लिखा कि “मिर्जा होली खेल रहे” साथ में लिखा दीवानों के ठुमके तथा अधिकारी इंटरटेनमेंट पर 3 लाख का व्यय। यह सब अनायास नहीं पूरी जानकारी में होना भी प्रदर्शनी का दिलचस्प पहलू है। किंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या निजी कार्यक्रमों में भी सरकारी अधिकारियों पर खर्च किया जाना न्यायोचित है? क्योंकि जन सूचना संबंधी विवरण देने में बताया गया की प्रदर्शनी सरकारी संस्था नहीं है?
लगता है कि इटावा प्रदर्शनी में आजकल यह चल रहा है कि आय और व्यय के आवंटन से संबंधित कानों कान बाहर के व्यक्ति को खबर ना हो ,बस मिल बाटकर बराबर करो। घर की बात बाहर पता न चले, की तर्ज पर इटावा जिला प्रदर्शनी आरटीआई सूचना देने की परिधि से बाहर एक निजी अर्थात किसी घरेलू संस्था के रूप में दिखाई पड़ने लगी। आंधी के आम जितना बीन सको बीन लो, कुछ एक लोग तो हमेशा वहीं पंडाल के हर मंच पर फोटो खिंचवाने ,खुद को चमकाने की नीयत से, तथा कुछ पल्ले पड़ जाए के लिए वहीं घूमते पाए जाते हैं। जिन्हें हर कार्यक्रम में देखा जा सकता है, किसी का नाम लेना उचित न होगा।
कार्यक्रम आवंटन में कुछ लोगों को कार्यक्रम के साथ धनराशि आवंटित कर दी जाती है जिसका प्रयोग उसकी नीयत और निजी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कितना व्यय करेगा तथा कितना अपना बचत खाता मजबूत करेगा। कुछ ऐसा ही मसला कौमी एकता/ सर्व धर्म सम्मेलन में देखने को मिला ।जिस कार्यक्रम के संयोजक एडवोकेट गुरमुख सिंह अरोड़ा तथा सहसंयोजक डॉ कुश चतुर्वेदी नामित थे । इस कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न धर्मों से ताल्लुक रखने वाले विद्वानों को एक मंच पर लाकर कौमी एकता धार्मिक एकता का संदेश देना होता है ,जिसका प्रचार प्रसार बड़े स्तर पर किए जाने की महती आवश्यकता है ,किंतु इस बार 2025 में प्रचार ,प्रसार हेतु पत्रकार बंधु दूर ही रखे गए तथा हिंदू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ,बौद्ध, जैन विद्वान इस मंच पर स्थान नहीं पा सके। यह संयोजक मंडल की कमी है या उन अनुपस्थित धर्मावलंबी विद्वानों ने आने से मना कर दिया । यह अनसुलझा पहलू है। जिस पर संयोजक मंडल को समीक्षा लिखनी चाहिए कि सर्वधर्म सम्मेलन सफल रहा या असफल । और कौमी एकता/ सर्व धर्म सम्मेलन की मिसाल कायम रह सकी या नहीं। तथा कितने लोग कार्यक्रम का दृश्य और श्रव्य लाभ पा सके?
प्रश्न यह है कि क्या असफल संयोजकत्व अगले वर्ष भी इस कार्यक्रम को कराने हेतु चिन्हित किया जाएगा? प्रदर्शनी अध्यक्ष एवं सचिव तथा कार्यकारी सदस्य समीक्षात्मक विवरण स्पष्ट करें ताकि भविष्य में कौमी एकता / सर्व धर्म सम्मेलन की मिसाल को कायम रखा जा सके, जो वक्त की बड़ी जरूरत है। जिसका संदेश दूर-दूर तक जा पाए कि “हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, इसाई, आपस में सब भाई-भाई ।साथ ही आने वाली नस्लों के लिए भी यह संदेश महत्वपूर्ण हो कि “हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।”
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जिला प्रदर्शनी का आयोजन करने के लिए ख़ास मकसद पशु मेला, विभिन्न प्रजाति के पशुओं की खरीद फरोख्त, के अलावा उन्नत किस्म के जानवरों के मालिकों को पुरस्कृत किया जाना था, विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों (हैंडलूम, हथकरघा, शिल्प कला, वस्तु कला, हस्तकला) विभिन्न प्रकार के उन्नत किस्म के कृषि बीज( धान ,चना, अरहर ,मूंग, ज्वार और आलू , जौ ,सूरजमुखी प्रजातियों के नाम तथा कंपनी और उपज ) तथा कृषि तकनीकी से जुड़े (ट्रैक्टर ,हल, जुताई, बुबाई मशीन, खुदाई मशीन, पंप सेट) विभिन्न जलीय जीव (मछली पालन हेतु प्रजातियां, मगर)आदि के साथ तकनीकी क्षेत्र के विभिन्न उपकरण विद्युत चालित उपकरण ,मानव चालित उपकरण के अतिरिक्त विभिन्न बीमारियों के टीकाकरण की जानकारी, बीमारियों के निदान हेतु सरकारी सुविधाएं तथा चिकित्सकीय परामर्श एवं उपाय, परिवार नियोजन तथा अन्य विविध संयंत्र गोबर गैस प्लांट, तथा किसान एवम् कुटीर उद्योगों हेतु ऋण संबंधी जानकारी को प्रदर्शनी में स्थान देकर, बेहतर प्रदर्शन हेतु संस्थाओं को पुरस्कृत किया जाता रहा। दूसरी ओर प्रदर्शनी पंडाल में लोक कलाओं, ललित कलाओं, नाटक मंचन तथा कवियों की कविताओं , वाद विवाद प्रतियोगिताओं के साथ विभिन्न प्रकार की महिला जगत के उत्थान जागृति हेतु कार्यक्रम जिसमें दहेज प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह हेतु आम जनमानस को विविध जानकारियां प्रदान करने के साथ कलाकारों , कवियों ,बाल कलाकारों को आदि को पुरस्कृत कर समाज के नागरिकों के बीच मोटिवेशन का काम किया जाता रहा। शायद पूर्व समय में जिला प्रदर्शनी का इससे भी बड़ा लक्ष्य रहा होगा। साथ ही दुकानदारों को सस्ती दर पर दुकान मुहैया कराना तथा उन्हें हो रही किसी प्रकार की समस्या का निदान करने हेतु जिला प्रदर्शनी संस्था पूरी तरह तत्पर रहती थी और अच्छे दुकानदारों को पुरस्कृत भी किया जाता था ।
किंतु पिछले कुछ वर्षों से मेगा नाइट की चकाचौंध ने समस्त संस्था की जिम्मेदारियां को संकुचित कर सिर्फ खाना पूर्ति तक समेट कर रख दिया है । यह प्रदर्शनी मेला आम जनमानस की खरीदारी का प्रमुख केंद्र था। जहां हर छोटा आदमी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकता था। किंतु अब जब दुकानों का किराया बेतहाशा बड़ा तो बाजार गर्म हो गया और नुमाइश आम आदमी से दूर निकल गई । वर्ष 2025 में साइकिल स्टैंड बिना नीलामी के उठा देना, प्रदर्शनी के जिम्मेदार पदाधिकरियों पर सवालिया निशान लगा रहा है। हालांकि पूर्व में अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शनी के कार्यक्रमों एवं आय व्यय एवम् कार्यक्रमों पर सवाल उठाया किंतु यह प्रदर्शनी चलते-चलते इतनी प्राइवेट हो गई है कि वह आरटीआई पर जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकती । किंतु उसके अध्यक्ष सरकारी और जिले के प्रमुख अधिकारी होंगे । जिनके लिए नुमाइश की आय से लाखों रुपया उनके एंटरटेनमेंट पर खर्च किया जाएगा । अब प्रश्न उठता है कि इटावा प्रदर्शनी सिर्फ मेगा नाइट पर ठुमके लगाकर मशहूर होती रहेगी? या फिर आम आदमी इस तरफ से अपना मुंह मोड़ ले ?? यह भविष्य के गर्त में है।
निष्पक्ष लेखन।
डॉ धर्मेंद्र कुमार
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