यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना मैया का भी उतना महत्व शायद ही किसी अन्य स्थल पर हो जहां से होती हुई ये आगे बढ़ीं हैं, जितना की इटावा में, ये सिर्फ इटावा ही है जहां चारों दिशाओं में यमुनाजी बहती हैं। यह अदभुत नजारा वर्षाकाल के दिनों में ग्राम सुनवारा से या फिर पास ही स्िथत संस्कृत महाविद्यापीठ परिसर स्िथत ऊंचे टीले से देखा जा सकता है। परिसर में ही ज्ञान और अध्ययन का ऐसा अथाह भंडार है और हजारों ऐसी दुर्लभ पुस्तकें एंव ग्रन्थ हैं जो माचिस की डिबिया की आकार में है तो कुछ भोजपत्र पर लिखी पुस्तकें हैं। यहीं पर पानी में ना डूबने वाला रामेश्वर पत्थर भी है तो धूपघड़ी भी है। इसी परिसर में एक ऐसे सिद्ध पुरूष की समाधि भी है जिसे खटखटा बाबा कहा जाता है। दिव्य दृष्िट वाले बाबा जब अपनी खड़ाऊं पहन कर भरी यमुना नदी को पार कर करते थे तब खटखट की आवाज सुनाई पड़ती थी और तब ऐसा लगता था कि जैसे वह सड़क पर चल रहे हों। उनकी समाधि के साथ ही उनके शिष्य की समाधि भी है और भक्त इस चमत्कारी खड़ाऊं की पूजा अर्चना गुरू पूर्णिमा आदि खास पर्व पर करते हैं।
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