इटावा 22 फरवरी। जीवन के 2 पक्ष होते हैं पहला सुख और दूसरा दुख, दोनों एक दूसरे के पूरक बताए गए हैं। सुख सदैव ईश्वरी श्रद्धा भाव को भुला देता है जबकि दुख ही ईश्वर से जोड़े रखने के लिए श्रद्धा भाव उत्पन्न करता है ताकि दुख से छुटकारा मिल सके। यह बात सरस कथा वाचक आचार्य ब्रजकिशोर वशिष्ठ भैया जी ने श्री सिद्ध गुफा जीव रक्षा गौशाला मैं ब्रह्मचारी शंभू नाथ जी महाराज के सानिध्य में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन व्याख्यान देते हुए कही।
आचार्य भैया जी में स्पष्ट किया कि न्याय दर्शन के अनुसार मन की अनुकूलता की अनुभूति ही सुख है एवं मन की प्रतिकूलता ही दुख। उन्होंने बताया कि जब कुंती में भगवान श्री कृष्ण से जीवन में सुख की अपेक्षा दुख मांगा तो भगवान श्री कृष्ण ने प्रश्न किया कि लोग सुख की अपेक्षा रखते हैं और आप दुख मांग रही हैं तो कुंती ने कहा कि सुख आने पर भगवान को भूल जाते हैं जबकि दुख में प्रतिक्षण ईश्वर का ही स्मरण किया जाता है। और निरंतर भगवत चिंतन से जो अनुभूति होती है वही परमानंद है। उन्होंने कहा कि परमानंद ही परम गति कहीं गई है।
कथा रसिक हरिदास विनोद कुमार द्विवेदी ने बताया कि इसी क्रम में आचार्य भैया जी ब्रजकिशोर वशिष्ठ ने बताया कि जीवन के अंतिम क्षण में ईश्वर का स्मरण भी परम गति दिलाता है उस पर भी यदि ईश्वर प्रत्यक्ष आ जाए तो क्या कहना। उन्होंने बताया कि महाभारत के बाद शर सैया पर पड़े भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होते ही भगवान श्री कृष्ण के सामने ही अपने प्राण छोड़ें।
आज के इस अनुष्ठान में परीक्षित के रूप में विराजमान श्रीमती दया चौहान-नागेंद्र चौहान सहित सभी श्रद्धालु जनों ने पूजन और आरती की।